• उदेश्य सर्वस्व (Uddeshya sarvasva)-

    त्वदीयं वस्तु महर्षे ! तुभ्यमेव समर्पये । इस लोकोक्ति के आधार पर आर्यसमाज के 10 उद्देश्यों का संगति सूत्र लेकर लेखक इस लघु पुस्तिका में इन उद्देश्यों की विस्तृत व्याख्या कर रहे हैं ।

    इस लघु पुस्तिका के मुख्य पृष्ठ पर बने चित्र उपकार – तुला में संगति – सूत्र की एक झांकी लें । उपकार – तुला के दो पलड़े हैं – एक है व्यक्ति – पालड़ा , है दूसरा समाज – पालड़ा । व्यक्ति – पलड़े में प्रथम पांच उद्देश्य रखें हैं । समाज – पलड़े में पिछले चार उद्देश्य रखे हैं । पहले पांच उद्देश्यों का लक्ष्य व्यक्ति निर्माण है , जबकि पिछले चार उद्देश्यों का लक्ष्य समाज निर्माण है ।

    व्यक्ति और समाज के निर्माण और सामंजस्य में ही विश्व निर्माण और संसार का उपकार संभव है । पाठक वृन्द चित्र में इसकी झांकी लें और लघु पुस्तिका का अध्ययन मनन करें |

  • क्या अथर्ववेद में जादू टोना आदि है ? ( Kya Atharvaved mein jadoo tona aadi hai ? )

    जादू शब्द फारसी भाषा का है । वहाँ पर इसका अर्थ बाजीगरी के खेल तमाशे , अमानुषिक करिश्मे , वशीकरण तथा हिंसा , परघात आदि हैं । जादू शब्द वेद के ‘ यातु ‘ शब्द का अपभ्रंश है । ‘ यातु ‘ का अर्थ हिंसा है । यातयति वधकर्मा ( निघण्टु २।१ ९ ) । अथर्ववेद में उपर्युक्त किसी भी कार्य का वर्णन नहीं है । वस्तुतः यह प्रतिपादन करना अत्यन्त कठिन है कि अथर्ववेद में जादू – टोना , सम्मोहन , वशीकरण , मारण- उच्चाटन आदि नहीं है । इसके विपरीत यह कहना अति सरल है कि अथर्ववेद में इन सबका वर्णन है । इसका कारण यह है कि अथर्ववेद में मारण , सम्मोहन , वशीकरण आदि से सम्बन्धित अनेक मन्त्र हैं । इनके साथ ही कृत्या , अभिचार , मणिबन्धन आदि का प्रतिपादन भी अथर्ववेद में किया गया है , किन्तु इनका वह अर्थ नहीं जोकि आजकल समझा जाता है । अथर्ववेद में अन्य दृष्टि से इनका प्रतिपादन किया गया है । यहाँ पर अन्तर केवल दृष्टि है ।

    ऐसा हम आज प्रत्यक्षरूप में देखते हैं । आज भी अनेक व्यक्तियों को भूत – प्रेत अथवा ऊपरी हवा से ग्रसित समझकर ओझाओं द्वारा उनका भूत – प्रेत दूर करने का स्वांग किया जाता है । अनेक व्यक्ति हवा में हाथ हिलाकर कोई पदार्थ दर्शकों के सामने प्रस्तुत करके अथवा अन्य किसी प्रकार से कोई चमत्कारपूर्ण प्रदर्शन करके दर्शकों के सामने जादू अथवा सिद्धि प्राप्ति की बात करते हैं । ये सब अन्धविश्वास हैं तथा अवैज्ञानिक लोगों में ही अधिक प्रचलित हैं । इनका पर्दाफाश करने के लिए आजकल एक वैज्ञानिक अनुसन्धान समिति कार्य कर रही है जिसकी चर्चा प्राय : समाचार पत्रों में भी आती रहती है । इन लोगों का दावा है कि इस प्रकार के कार्यों में जादू जैसी कोई बात नहीं है , अपितु यह केवल हाथ की सफाई है । भूत – प्रेत तथा ऊपरी हवा के विषय में भी यही बात है । आज डॉक्टरी परीक्षणों के आधार पर यह भली – भाँति सिद्ध हो गया है कि अनेक मानसिक तथा शारीरिक रोगों से ग्रस्त रोगियों को ही अज्ञानवश भूत – प्रेतों आदि से ग्रसित समझ लिया जाता है । इसी प्रकार अथर्ववेद में भी इन सब बातों का वर्णन है , कृत्या , अभिचार आदि के नाम हैं , वशीकरण , सम्मोहन , मणिबन्धन भी है । अतः समझ लिया जाता है कि ये सब क्रियाएँ जादू – टोने से सम्बन्धित हैं तथा अथर्ववेद इनका प्रतिपादक है । यह केवल पूर्वाग्रह है ठीक उसी प्रकार जैसे कि मानसिक रोगी को भूत – प्रेत से ग्रस्त समझने का । इसीलिए मैंने कहा कि अथर्ववेद में जादू – टोने आदि का प्रतिपादन करना अतिसरल है

  • कर्मफल सिद्धांत – Karmphal Siddhant

    उपाध्याय जी जन्मजात दार्शनिक थे । दर्शन तथा सिद्धान्त सम्बन्धी अनेकों उच्चकोटि के ग्रन्थ उन्होंने लिखे । पाप , पुण्य , दुःख , सुख , मृत्यु , पुनर्जन्म , जीव व ब्रह्म का सम्बन्ध विषयक अनके प्रश्नों पर इस पुस्तक में युक्तियुक्त सप्रमाण प्रकाश डाला गया है । ‘ कर्म – फल – सिद्धान्त को बार बार पढ़ने को आपका मन करेगा । प्रश्नोत्तर शैली में अत्यन्त शुष्क विषय को उपाध्याय जी ने बहुत रोचक व सरल सुबोध बना दिया है । कर्म फल सिद्धान्त पर छोटी – बड़ी अनेक पुस्तकें हैं , परन्तु उपाध्याय जी की यह पुस्तक अपने विषय की अनुपम कृति | उपाध्याय जी ने स्वयं ही इसका उर्दू अनुवाद किया था । उपाध्याय जी की कौन सी दार्शनिक पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है , यह निर्णय करना किसी भी विद्वान् के वश की बात नहीं है । बस यही कहकर सब गुणियों को सन्तोष करना चाहिए । कि अपने स्थान पर उनकी प्रत्येक पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है । ज्ञान पिपासु पाठक , उपाध्याय जी के सदा ऋणी रहेंगे ।

  • ऋषि दयानंद प्रतिपादीत 8 गप्प तथा 8 सत्य – Rishi Dayanand Pratipadit 8 Gappe Tathe 8 Satya

    ऋषि दयानंद की दृष्टि में त्यागने योग्य आठ गप्प थीं ( 1 ) 18 पुराण ( 2 ) पाषाण पूजा , ( 3 ) शैव शाक्तादी संप्रदाय , ( 4 ) तंत्र ग्रंथ , ( 5 ) नशीली वस्तुसेवन , ( 6 ) व्यभिचार , ( 7 ) चोरी , ( 8 ) कपट , छल , अभिमान , मिथ्या भाषण आदि । और स्वीकार करने योग्य आठ सत्य हैं ( 1 ) वेदादि सत्यशास्त्र , ( 2 ) ब्रह्मचर्य पालन , ( 3 ) वेदोक्त वर्णाश्रम धर्म ( 4 ) पंच महायज्ञ , ( 5 ) शम , दम , 5 तप , आदि का सेवन , ( 6 ) विचार , विवके , वैराग्य ग्रहण , ( 7 ) काम , क्रोध , लोभ , मोह आदि का त्याग , ( 8 ) पंच क्लेशों से मुक्त होकर मोक्ष रूपी चरम लक्ष्य की प्राप्ति । ऋषि के इसी क्रांतिकारी चिंतन को डॉ . भवानीलाल भारतीय ने जो विस्तार दिया है वह पठनीय तथा अनुकरणीय है ।

    This is an authentic book from the writer of about sixty books on life and works of Swami Dayananda Saraswati – Dr . Bhawanilal Bhartiya . The readers will get acquainted with the revolutionary ideological thoughts of Swami Dayananda through this book . While on his journey for the cause of Religion , Swami Dayananda expounded Eight baseless notions to be relinquished and Eight Truths to be adopted for peaceful living . The author has elaborated on these thoughts .

  • इस्लाम के दो चेहरे – Islam ke Do chehre By: Dr. KV. Palival

    हमें लगता है कि इस्लाम धर्म है ।   लेकिन इसकी प्रमाणिकता कैसे होगी यह भी जानना जरुरी है । क्यों एक विशेष मत-मजहब को मानने वाले अनुयायी ही आतंकवाद जैसी देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त है ।इस मत-मजहब-धर्म को विस्तार कैसे मिला ? बहुत से प्रश्न हमारे मन में होते है लेकिन उनका समाधान मिल पाना कठिन हो जाता है ।

    उक्त पुस्तक में इस्लाम मत की उत्पत्ति कैसे हुई ?, इस्लाम मत-मजहब या धर्म ?, इस्लाम को कैसे समझे ? पैगम्बर मुहम्मद का जीवन परिचय, इस्लाम से समाधान आदि मुख्य विषयों को डॉक्टर कृष्ण वल्लभ पालीवाल जी ने सरलता से समझाने के लिए इस्लाम के दो चेहरे पुस्तक को प्रकाशित करवाया था ।  हमें   आशा है कि उनके द्वारा लिखी गई यह पुस्तक इस्लाम के दो चेहरे आपका इस मत-मजहब-धर्म के प्रति विशेष अध्ययन कराएगी ।

  • आगरा का लाल किला हिन्दू भवन है-Agara Ka Lal Kila Hindu Bhavan Hai-PN Oak

    ‘ बादलगढ़ ‘ शब्दावली , जो आज तक आगरा – स्थित लालकिले के शाही भागों के नाम के रूप में साथ – साथ चली आ रही है , मध्यकालीन युग में पर्याप्त लोकप्रिय और प्रचलित रही है । यह आगरा के किले के लिए ही विशेष बात नहीं है अपितु अनेक हिन्दू किलों के शाही भागों अथवा उसके समीपस्थ भागों के नाम – योतन के लिए भी इसी शब्द का प्रयोग होता रहा है । अतः यह अनुमान लगाना गलत है जैसा कुछ इतिहासकारों ने किया है कि बादल गढ़ का निर्माण बादलसिंह नाम से पुकारे जाने वाले किसी सरदार ने ही किया होगा । इतिहासकारों को यह खोज निकालने का यत्न करना चाहिए कि मध्य कालीन युग में हिन्दू किले के भीतर के भाग अथवा उसके समीपस्य भागों के नाम किस प्रकार और कब ‘ वादलगढ़ ‘ पड़ गए । किन्तु बादलगढ़ शब्दावली का सम्पूक्तार्थ इतना सामान्य था , यह इसी बात से प्रत्यक्ष है कि यह अनेक हिन्दू किलों के वर्णनों में बारम्बार आया है । उदाहरणार्थ ( बादशाह अकवर का समकालीन ) वदायूंनी इतिहासकार बादलगढ़ के सम्बन्ध में उल्लेख करता है कि वह ग्वालियर में किले की तिलहटी में एक अत्युच्च रचना है । राजस्थान के इतिहास में हमें किलों के भीतर बने हुए अनेक स्थान ऐसे मिलते हैं जिनको बादलगढ़ कहते हैं । उसी परम्परा में आगरे का लालकिला भी या उसके ( भीतर के शाही राजमहल ) वादलगढ़ के नाम से पुकारे जाने लगे । हमें ऐसा प्रतीत होता है कि बादलगढ़ शब्दावली प्राकृत – मूल की है ।

  • Reason And Religion (In English) By GANGAPRASAD UPADHYAYA

    This book, Reason and Religion provokes rational thinking on subjects like God, Soul, pure of creation, the so-called mediators the prophets the priests, immortality, birth and rebirth, and the n for prayer. It also deals with subjects like superstition heresy, and various religious beliefs like monism pluralism, and it provides some views on Vedic too.

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