• भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज का विशेष (80%) योगदान- Bhartiye Swatantrata Sangraam mein Arya Samaj ka vishesh (80%) yogadan.

    एक तरफ आर्यसमाज के 80 % जमीनी बलिदानी और दूसरी तरफ केवल 20 % ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की मिलीभगत ! भला विचार तो करें कि आर्यसमाज के बलिदानियों के साथ कितना न्याय हुआ ? भारत के तथाकथित आधुनिक इतिहास की सारी गाथाएँ मोहनदास कर्मचन्द गांधी , जवाहरलाल नेहरू , सरदार वल्लभभाई पटेल , मोहम्मद अली जिन्ना जैसे नेताओं के ही इर्द गिर्द घूमती रही है और वही पढ़ी तथा सुनाई जाती है ।

    इतिहास को तोड़ – मरोड़कर प्रस्तुत करने वाले चन्द इतिहासकारों ने आर्यसमाजियों के बलिदान को भुलाने का जो पाप किया है वह अक्षम्य है । लेकिन आर्यसमाज से जुड़े इतिहासकारों ने अपने प्रयासों द्वारा सच को प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है । मैं इस विषय पर विचार करता हूँ , तो यह मेरी समझ से घोर अन्याय है कि , हमारे बच्चों को आर्यसमाज के योगदान के बारे में कुछ नहीं बताया जाता बल्कि इसका उलटा उन्हें यही पढ़ाया और रटाया जाता है कि भारत को आजादी केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने ही दिलाई ।

    यह तथ्य सच्चाई से कोसों दूर है । बच्चों को इस तरह का पाठ पढ़ाना अनैतिक होने के साथ – साथ उन्हें भ्रमित करना भी है । बिना 80 % आर्यसमाजी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के सहयोग के गांधी जी और नेहरू जी से तो ब्रिटिश सरकार बात भी नहीं करती थी । यह सत्य है कि – ” जिस विपक्ष के पास कोई बड़ी सामूहिक जन – सहयोग व ताकत न हो , उसे कोई सरकार नहीं सुनेगी । ” ( ” Any Goverment will not listen to oppostion which does not have a big majority support of masses . ” )

    शुरू – शुरू में अंग्रेजी सरकार ने भी यही किया । तथाकथित कांग्रेसी नेता सरकार के आगे सिर पटकते रहे कि रौलेट एक्ट वापस ले लो पर किसी ने नहीं सुना । लेकिन जब इसके खिलाफ अमर हुतात्मा स्वामी श्रद्धानन्द जी ने दिल्ली चाँदनी चौक में जुलूस निकाला तो अंग्रेजी सरकार घबरा गई । गोरे सैनिकों ने जुलूस को रोकना चाहा लेकिन स्वामी श्रदानन्द ने अपना सीना तान दिया और गरज उठे गोरे सैनिकों पर- ‘ चलाओ अपनी संगीनें मेरा सीना खुला है । ‘ गोरे सैनिक निडर संन्यासी की सिंह गर्जना सुन दुबक गए । तब आन – बान – शान के साथ जुलूस बढ़ा जो आगे चलकर एक विराट सभा में परिवर्तित हो गया ।

  • गोकरुणानिधि (Gokarunanidhi)

    महर्षि दयानन्द ने सभी पशुओं की हिंसा रोककर उनकी रक्षा करने के उद्देश्य से यह पुस्तक लिखी । चूँकि गौंओं के दूध तथा बैलों से सबसे अधिक हित होता है , अतः उन्होंने गौ की रक्षा पर अधिक बल दिया । वैसे सभी पशुओं की सुरक्षा के लिए लिखा है ।

    100 – 100 प्रतियाँ खरीद कर अपने परिचितों व मित्रों में बाँटिये ।

  • खट्टे मीठे चरपरे – Khatte meethe Charpare By Narendra vidhyavachaspati

    संसार के सभी लोगों को यह सत्य स्वीकारना पड़ा है कि अतीत सदा सुहाना होता है । इसी तथ्य को अंग्रेजों ने अपने अंदाज में कहा है कि ‘ पास्ट इज़ ऑलवेज़ प्लैजेंट । जीवन में कभी ऐसे भी हालात बने कि मन खट्टा हो गया , कभी अपनों ने ऐसा फटकारा – दुत्कारा कि सीधे दिल पर आघात लगे , कभी मौत के मुँह में ऐसे फँसे कि बचना मुहाल हो गया , कभी दुश्मन ने ऐसा दुलारा कि जीवन में शहद की . मिठास घुल गई , कभी छोटी – सी बालिका ने ‘ पिस्तौलों वाली अटैची ‘ थाम कर जान सांसत में डाल दी , कभी वहम के रोग ने ऐसा तिगुनी का नाच नचाया कि जीवन नरक बन गया । ऐसा भी हुआ कि कनस्तर से आटा गायब होने लगा , घर से रुपये – पैसे उड़ने लगे , रसोई से दालें – चावल उड़नछू होते रहे , परन्तु चोर कभी रंगे हाथों पक में नहीं आया । ये संस्मरण पंडितराज नरेन्द्र विद्यावाचस्पति के हैं जो इतने मनोरंजक हैं कि पढ़ते – सुनते रुलाते भी हैं , हँसाते भी हैं । गोआ , नेपाल , पूर्वाचल , उत्तरांचल , कूर्माचल और अण्डमान के संस्मरण हमारे राष्ट्र का ऐसा इतिहास दर्शाते हैं ।

  • क्रांतिकारी सावरकर – Krantikari Sawarkar (Freedom Fighter)

    युगपुरुष वीर विनायक दामोदर सावरकर एक हिन्दुत्ववादी राजनितिक चिंतक और स्वतन्त्रता सेनानी रहे है । अपने इन विचारों को अभिव्यक्त करने में उन्होंने कभी किसी प्रकार का संकोच नहीं किया । वह अपने प्रारंभिक विद्दार्थी जीवन से ही स्वाधीन भारत के स्वप्न देखने लगे थे । उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन जाने पर भी स्वाधीन भारत की इच्छा उन्हें क्रांतिकारियों के संपर्क में ले गयी कन्तिकारी गतिविधियों ने मान पर बड़ी बनाकर भारत लए गए । मार्ग में जहाज से समुन्द्र में कुठे पड़ना उनकी अदम्य इच्छाशक्ति ठउत्कट देशप्रेम का परिचायक है । भारत में जीवन पर्यन्त कठोर कारावास का दण्ड मिलने पर कालापानी भेजे गए , किन्तु कालेपानी की नारकीय यंत्रणाएँ भी उन्हें अपने लक्ष्य से विचलित नहीं कर सकी । भारत स्वतन्त्र हुआ , किन्तु उसके दो भाग कर दिए गए , अतः इस स्वतन्त्रता को वीर सावरकर ने अधूरी स्वतन्त्रता मन और पने जीवन में अंतिम वर्षों तक अखंड भारत का साप्न देखते रहे उनका यह उत्कट देश प्रेम भारतियों के लिए चिरकाल तक एक प्रेरणा स्त्रोत बना रहेगा ।

  • क्रांतिकारी महिलाएं – Krantikari Mahilaye By Murarilal Goyal

    देश की धरती ने देश को अनेक वीरांगनायें प्रदान की है । झांसी की रानी, लक्ष्मी बाई की वीरता की दस्तान तो हर जुबान पर चढ़ी हुई है पर रानी दुर्गावती , रानी पेठगम्मा , बेगम हजरत ग्रहल , रजिया सुल्तान , इन्दिरा गांधी के नामों को भी मुलाया नहीं जा सकता । इनके अलावा अन्य वीरांगनाओं का इतिहास भी कम गौरवपूर्ण नहीं है । उन सभी को पुस्तक में यथेष्ठ स्थान दिया गया है । यह पुस्तक देश की वीर नारियों की गौरवगाथा का दिग्दर्शन कराती है ।

  • काला पानी – Kala Pani (Savarkar)

    काला पानी की यातना एवं त्रासदी आप सभी जानते हैं।
    काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसके नाम से ही ज्ञात होता है।
    विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अतः उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखा वर्णन है। इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का उल्लेख है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे।काला पानी के कैदियों पर को क्रूरतम अत्याचार किए गए, कैसी -कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा उन सभी अश्रु दिला देने वाली घटनाओं का वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्रण भी उकेरा गया है। उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।.

  • कलिकालिन भारत – Kalikalin Bharat By Kunj Bihari Jalan

    महाभारत के बाद राजा परीक्षित से श्रीहर्ष ( सम्राट् हर्षवर्धन ) तक का इतिहास बड़े ही शोध के बाद लिखा गया है । यह सन् 2005 ई . से ही लिखा पड़ा है । इन सारे ग्रंथों के शोध और लेखन में जीवन के पचास वर्ष से अधिक का ही समय लग गया है । इस ग्रंथ की कुछ अपनी विशेषताएं हैं । इसमें भारतीय ऋषियों का इतिहास हमने पहली बार अध्याय 1 में दिया है । इसमें लिखा गया सारा इतिहास पुराण साहित्य , महाभारत तथा अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों , पत्र – पत्रिकाओं पर आधारित है । अध्याय 2 से महाभारत के बाद श्री अयोध्या , कौशाम्बी का पौरववंश , इन्द्रप्रस्थ का राजवंश तथा मगध के राजवंशों का वर्णन है । आन्ध्रवंश के बाद भागवत , विष्णु , मत्स्य तथा वायु पुराणों के आधार पर आभीर , गर्दभी शंक ( कंक ) यवन , तुर्क , गुरुण्ड , मीन तथा तुषार , हुण वंशीय राजाओं का इतिहास दिया गया है , पुराणों के अतिरिक्त अन्य इतिहासों में इतना स्पष्ट नहीं है । इनके अतिरिक्त महाभारत से पुलिन्द काम्बोज , वाहीक राजाओं का वर्णन भी इसमें है । इस ग्रंथ की एक और विशेषता यह है कि युधिष्ठिर से लेकर गजनी के सुलतान शाहबुद्धीन गौरी तक के राजवंशों तथा राजाओं ने इन्द्रप्रस्थ ( दिल्ली ) पर कितने वर्ष , कितने मास और दिनों तक राज्य किया , इसकी एक विस्तृत सूची भी अध्याय 5 में दी गई है । साथ ही परिशिष्ट एक और दो में काश्मीर तथा गुजरात के राजाओं की तालिका भी विस्तार के साथ दी गई है । अध्याय 24 में सम्राट् चन्द्रहरि विक्रमादित्य प्रथम , उज्जैन के सम्राट का वर्णन बहुत प्रमाणों के साथ इस ग्रंथ में लिखा गया है , जो अन्य इतिहासों में उपेक्षित रहा है ।

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