• क्रिशिचयनिटी कृष्ण नीति है-Christianity Krishan-neeti hai (HINDI) PN Oak

    इस पुस्तक के शीर्षक ” क्रिशिचयनिटी ” कृष्ण – नीति है ‘ से पाठको में मिश्रित प्रतिक्रिया उत्पन्न होने की सम्भावना है । उनमें से अधिकांश सम्भवतया छलित एवं भ्रमित अनुभव करते हुए आश्चर्य करेंगे कि । नीति क्या हो सकती है और यह किस प्रकार क्रिशिचयनिटी की ओर अग्रसर हुई होगी।

    यह सामान्य मानव धारणा है । किसी भी नई पुस्तक को उठाने पर यह समझा जाता है कि इसमें कुछ नया कहा गया है । और जब वह पुस्तक वास्तव में कुछ तथा कहती है तो उसकी प्रतिक्रिया होती है- ” क्या हास्यास्पद कथन है , ऐसी बात हमने कभी सुनी ही नहीं । ” कहना होगा कि भले हो कोई उसे समझने का बहाना बना रहा हो , किन्तु वह अपने मन और बुद्धि से उससे तब ही सहमत होता है जबकि वह उसकी अपनी धारणाओं से मेल खाता हो । यहाँ पर यह सिद्धान्त लागू होता है कि यदि किसी को स्नान का भरपुर आनन्द लेना हो तो उसे पूर्णतया नग्म रूप में जल में प्रविष्ट होना होगा । इसी प्रकार यदि किसी नए सिद्धान्त को पूर्णतया समझता है तो उसे अपने मस्तिष्क को समस्त अवधारणाओं , अवरोधों , शंकाओं , पक्षपातों , पूर्व धारणाओं , अनुमानों एवं सम्भावनाओं से मुक्त करना होगा । ऐसी सर्व सामान्य धारणाओं में आजकल एक धारणा यह भी है कि ईसाइयत एक धर्म है , जिसकी स्थापना जीसस काइस्ट ने की थी । यह पुस्तक यह सिद्ध करने के लिए है कि ‘ जीसस ‘ नाम का कोई था ही नहीं , इसलिए कोई ईसाइयत भी नहीं हो सकती । यदि इस प्रकार की सम्भावना से आपको किसी प्रकार की कपकपी नहीं होती है तो तभी आप इस पुस्तक के पारदर्शी सिद्धान्तरूपी जल में अवगाहन का आनद उठा सकते हैं , जोकि गर्मागर्म साक्ष्यो और मनभावन तर्को से सुवासित किया गया है।

  • क्रांतिकारी सावरकर – Krantikari Sawarkar (Freedom Fighter)

    युगपुरुष वीर विनायक दामोदर सावरकर एक हिन्दुत्ववादी राजनितिक चिंतक और स्वतन्त्रता सेनानी रहे है । अपने इन विचारों को अभिव्यक्त करने में उन्होंने कभी किसी प्रकार का संकोच नहीं किया । वह अपने प्रारंभिक विद्दार्थी जीवन से ही स्वाधीन भारत के स्वप्न देखने लगे थे । उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन जाने पर भी स्वाधीन भारत की इच्छा उन्हें क्रांतिकारियों के संपर्क में ले गयी कन्तिकारी गतिविधियों ने मान पर बड़ी बनाकर भारत लए गए । मार्ग में जहाज से समुन्द्र में कुठे पड़ना उनकी अदम्य इच्छाशक्ति ठउत्कट देशप्रेम का परिचायक है । भारत में जीवन पर्यन्त कठोर कारावास का दण्ड मिलने पर कालापानी भेजे गए , किन्तु कालेपानी की नारकीय यंत्रणाएँ भी उन्हें अपने लक्ष्य से विचलित नहीं कर सकी । भारत स्वतन्त्र हुआ , किन्तु उसके दो भाग कर दिए गए , अतः इस स्वतन्त्रता को वीर सावरकर ने अधूरी स्वतन्त्रता मन और पने जीवन में अंतिम वर्षों तक अखंड भारत का साप्न देखते रहे उनका यह उत्कट देश प्रेम भारतियों के लिए चिरकाल तक एक प्रेरणा स्त्रोत बना रहेगा ।

  • क्रांतिकारी महिलाएं – Krantikari Mahilaye By Murarilal Goyal

    देश की धरती ने देश को अनेक वीरांगनायें प्रदान की है । झांसी की रानी, लक्ष्मी बाई की वीरता की दस्तान तो हर जुबान पर चढ़ी हुई है पर रानी दुर्गावती , रानी पेठगम्मा , बेगम हजरत ग्रहल , रजिया सुल्तान , इन्दिरा गांधी के नामों को भी मुलाया नहीं जा सकता । इनके अलावा अन्य वीरांगनाओं का इतिहास भी कम गौरवपूर्ण नहीं है । उन सभी को पुस्तक में यथेष्ठ स्थान दिया गया है । यह पुस्तक देश की वीर नारियों की गौरवगाथा का दिग्दर्शन कराती है ।

  • काला पानी – Kala Pani (Savarkar)

    काला पानी की यातना एवं त्रासदी आप सभी जानते हैं।
    काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसके नाम से ही ज्ञात होता है।
    विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अतः उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखा वर्णन है। इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का उल्लेख है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे।काला पानी के कैदियों पर को क्रूरतम अत्याचार किए गए, कैसी -कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा उन सभी अश्रु दिला देने वाली घटनाओं का वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्रण भी उकेरा गया है। उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।.

  • कलिकालिन भारत – Kalikalin Bharat By Kunj Bihari Jalan

    महाभारत के बाद राजा परीक्षित से श्रीहर्ष ( सम्राट् हर्षवर्धन ) तक का इतिहास बड़े ही शोध के बाद लिखा गया है । यह सन् 2005 ई . से ही लिखा पड़ा है । इन सारे ग्रंथों के शोध और लेखन में जीवन के पचास वर्ष से अधिक का ही समय लग गया है । इस ग्रंथ की कुछ अपनी विशेषताएं हैं । इसमें भारतीय ऋषियों का इतिहास हमने पहली बार अध्याय 1 में दिया है । इसमें लिखा गया सारा इतिहास पुराण साहित्य , महाभारत तथा अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों , पत्र – पत्रिकाओं पर आधारित है । अध्याय 2 से महाभारत के बाद श्री अयोध्या , कौशाम्बी का पौरववंश , इन्द्रप्रस्थ का राजवंश तथा मगध के राजवंशों का वर्णन है । आन्ध्रवंश के बाद भागवत , विष्णु , मत्स्य तथा वायु पुराणों के आधार पर आभीर , गर्दभी शंक ( कंक ) यवन , तुर्क , गुरुण्ड , मीन तथा तुषार , हुण वंशीय राजाओं का इतिहास दिया गया है , पुराणों के अतिरिक्त अन्य इतिहासों में इतना स्पष्ट नहीं है । इनके अतिरिक्त महाभारत से पुलिन्द काम्बोज , वाहीक राजाओं का वर्णन भी इसमें है । इस ग्रंथ की एक और विशेषता यह है कि युधिष्ठिर से लेकर गजनी के सुलतान शाहबुद्धीन गौरी तक के राजवंशों तथा राजाओं ने इन्द्रप्रस्थ ( दिल्ली ) पर कितने वर्ष , कितने मास और दिनों तक राज्य किया , इसकी एक विस्तृत सूची भी अध्याय 5 में दी गई है । साथ ही परिशिष्ट एक और दो में काश्मीर तथा गुजरात के राजाओं की तालिका भी विस्तार के साथ दी गई है । अध्याय 24 में सम्राट् चन्द्रहरि विक्रमादित्य प्रथम , उज्जैन के सम्राट का वर्णन बहुत प्रमाणों के साथ इस ग्रंथ में लिखा गया है , जो अन्य इतिहासों में उपेक्षित रहा है ।

  • ओंकार निर्णय – Omkar nirnaya By ShivShankar Sharma Kavyatirth

    ओंकार निर्णय नामक पुस्तक आध्यात्मिक स्वाध्याय के लिए अनूठी पुस्तक है । ‘ ओझर ‘ अथवा ‘ ओ ३ म् ‘ के अर्थ , महत्व और उपास्य स्वरूप को समझने के लिए इससे बढ़कर प्रमाण और तर्कयुक्त पुस्तक शायद ही कोई अन्य हो । विद्वान् लेखक ने इस पुस्तक में वेदों , ब्राह्मण ग्रन्थों , उपनिषदों , मनुस्मृति , गीता , व्याकरण आदि वैदिक साहित्य के प्रमाण देकर ‘ ओ ३ म ‘ के अर्थ और महत्व को तो प्रतिपादित किया ही है , साथ ही पुराणों और तन्त्र ग्रन्थों में वर्णित ओ ३ म् के महत्व को भी खोजकर उसको सप्रमाण प्रस्तुत कर दिया है ।

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