खट्टे मीठे चरपरे – Khatte meethe Charpare By Narendra vidhyavachaspati

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संसार के सभी लोगों को यह सत्य स्वीकारना पड़ा है कि अतीत सदा सुहाना होता है । इसी तथ्य को अंग्रेजों ने अपने अंदाज में कहा है कि ‘ पास्ट इज़ ऑलवेज़ प्लैजेंट । जीवन में कभी ऐसे भी हालात बने कि मन खट्टा हो गया , कभी अपनों ने ऐसा फटकारा – दुत्कारा कि सीधे दिल पर आघात लगे , कभी मौत के मुँह में ऐसे फँसे कि बचना मुहाल हो गया , कभी दुश्मन ने ऐसा दुलारा कि जीवन में शहद की . मिठास घुल गई , कभी छोटी – सी बालिका ने ‘ पिस्तौलों वाली अटैची ‘ थाम कर जान सांसत में डाल दी , कभी वहम के रोग ने ऐसा तिगुनी का नाच नचाया कि जीवन नरक बन गया । ऐसा भी हुआ कि कनस्तर से आटा गायब होने लगा , घर से रुपये – पैसे उड़ने लगे , रसोई से दालें – चावल उड़नछू होते रहे , परन्तु चोर कभी रंगे हाथों पक में नहीं आया । ये संस्मरण पंडितराज नरेन्द्र विद्यावाचस्पति के हैं जो इतने मनोरंजक हैं कि पढ़ते – सुनते रुलाते भी हैं , हँसाते भी हैं । गोआ , नेपाल , पूर्वाचल , उत्तरांचल , कूर्माचल और अण्डमान के संस्मरण हमारे राष्ट्र का ऐसा इतिहास दर्शाते हैं ।

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संसार के सभी लोगों को यह सत्य स्वीकारना पड़ा है कि अतीत सदा सुहाना होता है । इसी तथ्य को अंग्रेजों ने अपने अंदाज में कहा है कि ‘ पास्ट इज़ ऑलवेज़ प्लैजेंट । जीवन में कभी ऐसे भी हालात बने कि मन खट्टा हो गया , कभी अपनों ने ऐसा फटकारा – दुत्कारा कि सीधे दिल पर आघात लगे , कभी मौत के मुँह में ऐसे फँसे कि बचना मुहाल हो गया , कभी दुश्मन ने ऐसा दुलारा कि जीवन में शहद की . मिठास घुल गई , कभी छोटी – सी बालिका ने ‘ पिस्तौलों वाली अटैची ‘ थाम कर जान सांसत में डाल दी , कभी वहम के रोग ने ऐसा तिगुनी का नाच नचाया कि जीवन नरक बन गया । ऐसा भी हुआ कि कनस्तर से आटा गायब होने लगा , घर से रुपये – पैसे उड़ने लगे , रसोई से दालें – चावल उड़नछू होते रहे , परन्तु चोर कभी रंगे हाथों पक में नहीं आया । ये संस्मरण पंडितराज नरेन्द्र विद्यावाचस्पति के हैं जो इतने मनोरंजक हैं कि पढ़ते – सुनते रुलाते भी हैं , हँसाते भी हैं । गोआ , नेपाल , पूर्वाचल , उत्तरांचल , कूर्माचल और अण्डमान के संस्मरण हमारे राष्ट्र का ऐसा इतिहास दर्शाते हैं ।

Additional information

Weight 0.3 kg
Dimensions 21.59 × 21.59 cm
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