भाषा का इतिहास – Bhasha Ka Itihas
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प्रस्तुत ग्रन्थ में भाषा – विद्या-विषयक प्राचीन भारतीय पक्ष का दिग्दर्शन कराया गया है। इस तुलनात्मक अध्ययन से पाठकों का ज्ञान बहुत परिमार्जित हो जाएगा।
भारतीय सत्य इतिहास को प्रकाशित करने के अनुक्रम में यह पुस्तक अद्वितीय है। लेखक ने वर्तमान भाषा–मत के दोषों को उन्मूलन कर प्राचीन भारतीय आर्य ग्रन्थों की सहायता से इसे मत-मात्रा से उपर उठाकर भाषा – विद्या के स्थान तक पहुचाया है।
पश्चिम के सर्वमान्य भाषा – विदों के विभिन्न मत भी प्रायः उद्धृत किये गए हैं। जर्मन लेखकों का भाषा- विद्या-विषयक मिथ्याभिमान परीक्षित किया गया है और उसका खोखलापन दर्शाया गया है ।
नीरजस्तम,
सत्यवक्ता, तत्त्ववेत्ता, महाज्ञान–सम्पन्न आर्य विद्वान् मूल भाषा संस्कृत के क्यों उपासक थे, और विकृत, कुलषित अपभ्रंशों के क्यों विरोधी थे, यह तत्त्व इस ग्रन्थ के अध्ययन से स्पष्ट होगा ।
प्रस्तुत ग्रन्थ में भाषा – विद्या-विषयक प्राचीन भारतीय पक्ष का दिग्दर्शन कराया गया है। इस तुलनात्मक अध्ययन से पाठकों का ज्ञान बहुत परिमार्जित हो जाएगा।
भारतीय सत्य इतिहास को प्रकाशित करने के अनुक्रम में यह पुस्तक अद्वितीय है। लेखक ने वर्तमान भाषा–मत के दोषों को उन्मूलन कर प्राचीन भारतीय आर्य ग्रन्थों की सहायता से इसे मत-मात्रा से उपर उठाकर भाषा – विद्या के स्थान तक पहुचाया है।
पश्चिम के सर्वमान्य भाषा – विदों के विभिन्न मत भी प्रायः उद्धृत किये गए हैं। जर्मन लेखकों का भाषा- विद्या-विषयक मिथ्याभिमान परीक्षित किया गया है और उसका खोखलापन दर्शाया गया है ।
नीरजस्तम,
सत्यवक्ता, तत्त्ववेत्ता, महाज्ञान–सम्पन्न आर्य विद्वान् मूल भाषा संस्कृत के क्यों उपासक थे, और विकृत, कुलषित अपभ्रंशों के क्यों विरोधी थे, यह तत्त्व इस ग्रन्थ के अध्ययन से स्पष्ट होगा ।
Additional information
Weight | 0.33 kg |
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Dimensions | 21 × 13 cm |
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