• ऋषि दयानन्द सिद्धांत और जीवन दर्शन – Rishi Dayanand Siddhant aur Jivan Darshan

    प्रस्तुत ग्रन्थ की विशेषता दयानन्द के सिद्धान्तों और जीवनदर्शन की एक सुस्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करना है । इसे समग्र तथा सर्वागीण बनाना लेखक का प्रमुख ध्येय रहा है । फलतः भारत में यूरोपीय शक्तियों के आगमन तथा दयानन्द के युग की परिस्थितियों के आकलन के पश्चात् नवजागरण आन्दोलन की एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की गई है । दयानन्द के उनसठ वर्षीय जीवनक्रम को प्रस्तुत करने के पश्चात् धर्म , दर्शन , संस्कृति , प्रशासन तथा राजधर्म जैसे विषयों पर उनके सटीक विचारों को उन्हीं के जीवन एवं ग्रन्थों के आधार पर विवेचित किया गया है ।

  • ऋषि दयानंद का तत्त्व दर्शन – Rishi Dayanand ka Tatva Darshan

    पं . गंगाप्रसाद उपाध्याय अंग्रेजी में लिखित ‘ फिलोसॉफी ऑफ दयानन्द ‘ का हिन्दी अनुवाद । यह ग्रन्थ निराला है । इसकी शैली भी निराली है । सम्पूर्ण आर्य साहित्य में हमारे किसी भी दार्शनिक साहित्यकार ने इतनी सहज , सरल तथा स्वाभाविक युक्तियों से वैदिक सिद्धान्तों का मण्डन नहीं किया जो आपको इस ग्रन्थ में मिलेगा । उपाध्यायजी की हुछ विषयों पर मौलिक व्याख्याएं अत्यन्त दय स्पर्शी हैं । निस्सन्देह ऋषि दयानन्द की विचार धारा के अध्ययन से वर्तमान एवं भविष्य , दोनों युग लसभान्वित होते रहेंगे ।

    Translation of PHILOSOPHY OF DAYANAND by Pt . Ganga Prasad Upadyaya . Find the philosophy that is live , dynamic & positive . The philosophy of Dayanand rests on the self – evident Vedas , and not on the conditional evidences . The book speaks of the contemplative truths combined with scientific facts .

  • अमर सेनानी सावरकर (Amar Senani Saavarkar)

    वीर सावरकर आधुनिक भारत के निर्माताओं की अग्रणी पंक्ति के नक्षत्र हैं । ‘ वीर सावरकर ‘ भारत के प्रथम छात्र थे , जिन्हें देशभक्ति के आरोप में कालेज से निष्कासित किया गया । वे प्रथम युवक थे , जिन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने का साहस दिखाया । वे प्रथम बैरिस्टर थे , जिन्हें परीक्षा पास करने पर भी प्रमाण पत्र नहीं दिया गया । वे पहले भारतीय हैं , जिन्होंने लंदन में १८५७ के तथाकथित गदर को भारतीय स्वातंत्र्य संगाम का नाम दिया । वे विश्व के प्रथम लेखक हैं जिनकी पुस्तक ‘ १८५७ का स्वातंत्र्य समर ‘ प्रकाशन के पूर्व ही जब्त कर ली गयी । वे प्रथम भारतीय हैं जिनका अभियोग हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चला । संसार के इतिहास में वे प्रथम महापुरुष हैं , जिनके बंदी विवाद के कारण फ्रांस के प्रधानमंत्री एम बायन को त्याग – पत्र देना पड़ा । वे पहले कैदी थे , जिन्होंने अण्डमान में जेल की दीवारों पर कील की लेखनी से साहित्य सृजन किया । वे प्रथम मेधावी हैं , जिन्होंने काले पानी की सजा काटते हुए ( कोल्हू में बैल की जगह जुतना , चूने की चक्की चलाना , रामबांस कूटना , कोड़ों की मार सहना ) भी दश – सहस्र पंक्तियों को कंठस्थ करके यह सिद्ध किया कि सृष्टि के आदि काल में आर्यों ने वाणी ( कण्ठ ) द्वारा वेदों को किस प्रकार जीवित रखा । वे प्रथम राजनीतिक नेता थे , जिन्होंने समस्त संसार के समक्ष भारत देश को हिन्दू राष्ट्र सिद्ध करके गांधी जी को चुनौती दी थी । वे प्रथम क्रांतिकारी थे , जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी मांगी ।

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