• आर्योद्देश्यरत्नमाला (Arya uddeshya ratnamala

    इस ग्रन्थ में महत्वपूर्ण व्यवहारिक शब्दों ( आर्यों के मन्तव्यों ) की परिभाषाएँ प्रस्तुत की गई है , जो वेदादि शास्त्रों पर आधारित हैं । इसमें 100 मन्तव्यों ( नियमों ) का संग्रह है । अथात् सौ नियमों रूपी रत्नो की माला गूँथी गई है । धर्म और व्यवहार में आने वाले इन शब्दों एवं नियमों का सच्चा तथा वास्तविक अर्थ समझ कर व्यक्ति भटकने से बच जाए । अतः सब मनुष्यों के हितार्थ लिखी गई है । 100 – 100 प्रतियाँ खरीद कर अपने मित्रों व बालक – बालिकाओं में बाँटिये । अंग्रेजी में भी उपलब्ध ।

    Maharshi Dayanand Saraswati wrote Aryoddeshya Ratnamala to highlight the beliefs , values , and principles of Aryas . In this small booklet , he used very simple language to define very complex and difficult concepts that were and still are misunderstood in society . For example , the word ” Vishwaas ” means belief in English . Generally , people do not associate belief with truth . However , Maharshi Dayanand states that Vishwaas means belief that aligns with truth and truthful outcomes . This definition is unique and would motivate people to reexamine their beliefs and search for truth . Maharshi Dayanand Saraswati wrote many books . Some of the well – known ones are Satyaarth Prakaash , Sanskaar Vidhi , and Rig Vedaadi Bhaashya Bhoomikaa . Aryoddeshya Ratna Mala is not well known in society today . The goal of translating it in English is to publicize it on a grand scale in India and abroad with the hope that readers may find it inspiring and educational .

  • उदेश्य सर्वस्व (Uddeshya sarvasva)-

    त्वदीयं वस्तु महर्षे ! तुभ्यमेव समर्पये । इस लोकोक्ति के आधार पर आर्यसमाज के 10 उद्देश्यों का संगति सूत्र लेकर लेखक इस लघु पुस्तिका में इन उद्देश्यों की विस्तृत व्याख्या कर रहे हैं ।

    इस लघु पुस्तिका के मुख्य पृष्ठ पर बने चित्र उपकार – तुला में संगति – सूत्र की एक झांकी लें । उपकार – तुला के दो पलड़े हैं – एक है व्यक्ति – पालड़ा , है दूसरा समाज – पालड़ा । व्यक्ति – पलड़े में प्रथम पांच उद्देश्य रखें हैं । समाज – पलड़े में पिछले चार उद्देश्य रखे हैं । पहले पांच उद्देश्यों का लक्ष्य व्यक्ति निर्माण है , जबकि पिछले चार उद्देश्यों का लक्ष्य समाज निर्माण है ।

    व्यक्ति और समाज के निर्माण और सामंजस्य में ही विश्व निर्माण और संसार का उपकार संभव है । पाठक वृन्द चित्र में इसकी झांकी लें और लघु पुस्तिका का अध्ययन मनन करें |

  • गोकरुणानिधि (Gokarunanidhi)

    महर्षि दयानन्द ने सभी पशुओं की हिंसा रोककर उनकी रक्षा करने के उद्देश्य से यह पुस्तक लिखी । चूँकि गौंओं के दूध तथा बैलों से सबसे अधिक हित होता है , अतः उन्होंने गौ की रक्षा पर अधिक बल दिया । वैसे सभी पशुओं की सुरक्षा के लिए लिखा है ।

    100 – 100 प्रतियाँ खरीद कर अपने परिचितों व मित्रों में बाँटिये ।

  • आर्य और आर्य समाज का संक्षिप्त परिचय (Arya aur Arya samaj Ka Sankshipt Parichaya )

    सामाजिक , आध्यात्मिक एवं राष्ट्रीय विचारधारा के आन्दोलन का नाम आर्यसमाज है । आर्यसमाज एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है । भारत एवं भारत के बाहर भी अनेक देशों में इसकी शाखाएं हैं । देश के अनेक महापुरुषों ने इसका महत्त्वपूर्ण योगदान समाज सुधार , संस्कृति रक्षा व वर्तमान भारत की स्वतन्त्रता में बताया है ।

    किन्तु फिर भी आम आदमी आज इससे पूर्णतः परिचित नहीं है , इसे समझते नहीं हैं । – पाठकों को इस पुस्तक से आर्यसमाज के प्रति सही जानकारी हो व किन्हीं कारणों से फैली भ्रान्ति नष्ट हो और इसके महत्त्व को जन – मानस समझ सके यही भावना है ।

  • आर्यसमाज क्या और क्यों ? (Aryasamaj kya aur Kyon)

    आर्यसमाज एक विख्यात धार्मिक संस्था का नाम है । आधुनिक विश्व के इतिहास में इस संस्था ने जन जागरण व जन – कल्याण के अद्भुत कार्य करके एक इतिहास बनाया है । प्रस्तुत है एक परिचय | आर्यसमाज के सिद्धान्त व उद्देश्य , संस्थापक का संक्षिप्त जीवन परिचय , ईश्वर और उसकी उपासना , आहार , संस्कार और व्यवहार , आर्यसमाज के कुछ हुतात्मा , जन जागरण को आर्यसमाज की देन , विदेशों में आर्यसमाज आदि पर विचार प्रस्तुत हैं । 

  • क्या अथर्ववेद में जादू टोना आदि है ? ( Kya Atharvaved mein jadoo tona aadi hai ? )

    जादू शब्द फारसी भाषा का है । वहाँ पर इसका अर्थ बाजीगरी के खेल तमाशे , अमानुषिक करिश्मे , वशीकरण तथा हिंसा , परघात आदि हैं । जादू शब्द वेद के ‘ यातु ‘ शब्द का अपभ्रंश है । ‘ यातु ‘ का अर्थ हिंसा है । यातयति वधकर्मा ( निघण्टु २।१ ९ ) । अथर्ववेद में उपर्युक्त किसी भी कार्य का वर्णन नहीं है । वस्तुतः यह प्रतिपादन करना अत्यन्त कठिन है कि अथर्ववेद में जादू – टोना , सम्मोहन , वशीकरण , मारण- उच्चाटन आदि नहीं है । इसके विपरीत यह कहना अति सरल है कि अथर्ववेद में इन सबका वर्णन है । इसका कारण यह है कि अथर्ववेद में मारण , सम्मोहन , वशीकरण आदि से सम्बन्धित अनेक मन्त्र हैं । इनके साथ ही कृत्या , अभिचार , मणिबन्धन आदि का प्रतिपादन भी अथर्ववेद में किया गया है , किन्तु इनका वह अर्थ नहीं जोकि आजकल समझा जाता है । अथर्ववेद में अन्य दृष्टि से इनका प्रतिपादन किया गया है । यहाँ पर अन्तर केवल दृष्टि है ।

    ऐसा हम आज प्रत्यक्षरूप में देखते हैं । आज भी अनेक व्यक्तियों को भूत – प्रेत अथवा ऊपरी हवा से ग्रसित समझकर ओझाओं द्वारा उनका भूत – प्रेत दूर करने का स्वांग किया जाता है । अनेक व्यक्ति हवा में हाथ हिलाकर कोई पदार्थ दर्शकों के सामने प्रस्तुत करके अथवा अन्य किसी प्रकार से कोई चमत्कारपूर्ण प्रदर्शन करके दर्शकों के सामने जादू अथवा सिद्धि प्राप्ति की बात करते हैं । ये सब अन्धविश्वास हैं तथा अवैज्ञानिक लोगों में ही अधिक प्रचलित हैं । इनका पर्दाफाश करने के लिए आजकल एक वैज्ञानिक अनुसन्धान समिति कार्य कर रही है जिसकी चर्चा प्राय : समाचार पत्रों में भी आती रहती है । इन लोगों का दावा है कि इस प्रकार के कार्यों में जादू जैसी कोई बात नहीं है , अपितु यह केवल हाथ की सफाई है । भूत – प्रेत तथा ऊपरी हवा के विषय में भी यही बात है । आज डॉक्टरी परीक्षणों के आधार पर यह भली – भाँति सिद्ध हो गया है कि अनेक मानसिक तथा शारीरिक रोगों से ग्रस्त रोगियों को ही अज्ञानवश भूत – प्रेतों आदि से ग्रसित समझ लिया जाता है । इसी प्रकार अथर्ववेद में भी इन सब बातों का वर्णन है , कृत्या , अभिचार आदि के नाम हैं , वशीकरण , सम्मोहन , मणिबन्धन भी है । अतः समझ लिया जाता है कि ये सब क्रियाएँ जादू – टोने से सम्बन्धित हैं तथा अथर्ववेद इनका प्रतिपादक है । यह केवल पूर्वाग्रह है ठीक उसी प्रकार जैसे कि मानसिक रोगी को भूत – प्रेत से ग्रस्त समझने का । इसीलिए मैंने कहा कि अथर्ववेद में जादू – टोने आदि का प्रतिपादन करना अतिसरल है

  • आर्य सत्संग गुटका (Arya Satsang Gutika)

    सन्ध्या , प्रार्थना , स्वस्तिवाचन शान्तिकरण , प्रधान हवन , संगठनसूक्त , आर्यसमाज के नियम एवं मनोहारी भजन ( सार्वदेशिक धर्मार्य सभा से स्वीकृत पद्धति के आधार पर ) ।

  • Aryoddeshya Ratna Mala

    In 1873, a book called Aryodshyaratnamala was published in which Swamiji has described the definition of one hundred words. Many of these words come in common parlance but their meanings have become fixed, for example Ishwar Dharma-Karma etc. They are defined and explained in this book.

  • Shri Satyanarayanavrata Katha By PT. SATYAPRAKASH BEEGOO

    The Satyanarayana Vrata Katha is one of the most popular stories of the Puranic Literature. Svami Jagadishwaranand Ji has written an interesting commentary in Hindi. He has thrown much light on the nature of God and God Realisation. He has also explained about the correct meaning of Vrata and Puja.

  • आर्यभिविनय (Aryabhivinaya)

    महर्षि ने इस लघु ग्रन्थ द्वारा ईश्वर के स्वरूप का ज्ञान कराया है । ऋग्वेद के 53 मन्त्रों तथा यजुर्वेद के 54 मन्त्रों का हिन्दी भाषा में व्याख्यान करके ईश्वर के स्वरूप का बोध कराया है । ईश्वर के स्वरूप के साथ साथ परमेश्वर की स्तुति , प्रार्थना व उपासना तथा धर्मादि विषयों का भी वर्णन है । 100 – 100 प्रतियाँ खरीद कर अपने परिचितों में बाँटिये ।

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