• कलिकालिन भारत – Kalikalin Bharat By Kunj Bihari Jalan

    महाभारत के बाद राजा परीक्षित से श्रीहर्ष ( सम्राट् हर्षवर्धन ) तक का इतिहास बड़े ही शोध के बाद लिखा गया है । यह सन् 2005 ई . से ही लिखा पड़ा है । इन सारे ग्रंथों के शोध और लेखन में जीवन के पचास वर्ष से अधिक का ही समय लग गया है । इस ग्रंथ की कुछ अपनी विशेषताएं हैं । इसमें भारतीय ऋषियों का इतिहास हमने पहली बार अध्याय 1 में दिया है । इसमें लिखा गया सारा इतिहास पुराण साहित्य , महाभारत तथा अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों , पत्र – पत्रिकाओं पर आधारित है । अध्याय 2 से महाभारत के बाद श्री अयोध्या , कौशाम्बी का पौरववंश , इन्द्रप्रस्थ का राजवंश तथा मगध के राजवंशों का वर्णन है । आन्ध्रवंश के बाद भागवत , विष्णु , मत्स्य तथा वायु पुराणों के आधार पर आभीर , गर्दभी शंक ( कंक ) यवन , तुर्क , गुरुण्ड , मीन तथा तुषार , हुण वंशीय राजाओं का इतिहास दिया गया है , पुराणों के अतिरिक्त अन्य इतिहासों में इतना स्पष्ट नहीं है । इनके अतिरिक्त महाभारत से पुलिन्द काम्बोज , वाहीक राजाओं का वर्णन भी इसमें है । इस ग्रंथ की एक और विशेषता यह है कि युधिष्ठिर से लेकर गजनी के सुलतान शाहबुद्धीन गौरी तक के राजवंशों तथा राजाओं ने इन्द्रप्रस्थ ( दिल्ली ) पर कितने वर्ष , कितने मास और दिनों तक राज्य किया , इसकी एक विस्तृत सूची भी अध्याय 5 में दी गई है । साथ ही परिशिष्ट एक और दो में काश्मीर तथा गुजरात के राजाओं की तालिका भी विस्तार के साथ दी गई है । अध्याय 24 में सम्राट् चन्द्रहरि विक्रमादित्य प्रथम , उज्जैन के सम्राट का वर्णन बहुत प्रमाणों के साथ इस ग्रंथ में लिखा गया है , जो अन्य इतिहासों में उपेक्षित रहा है ।

  • कर्मफल सिद्धांत – Karmphal Siddhant

    उपाध्याय जी जन्मजात दार्शनिक थे । दर्शन तथा सिद्धान्त सम्बन्धी अनेकों उच्चकोटि के ग्रन्थ उन्होंने लिखे । पाप , पुण्य , दुःख , सुख , मृत्यु , पुनर्जन्म , जीव व ब्रह्म का सम्बन्ध विषयक अनके प्रश्नों पर इस पुस्तक में युक्तियुक्त सप्रमाण प्रकाश डाला गया है । ‘ कर्म – फल – सिद्धान्त को बार बार पढ़ने को आपका मन करेगा । प्रश्नोत्तर शैली में अत्यन्त शुष्क विषय को उपाध्याय जी ने बहुत रोचक व सरल सुबोध बना दिया है । कर्म फल सिद्धान्त पर छोटी – बड़ी अनेक पुस्तकें हैं , परन्तु उपाध्याय जी की यह पुस्तक अपने विषय की अनुपम कृति | उपाध्याय जी ने स्वयं ही इसका उर्दू अनुवाद किया था । उपाध्याय जी की कौन सी दार्शनिक पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है , यह निर्णय करना किसी भी विद्वान् के वश की बात नहीं है । बस यही कहकर सब गुणियों को सन्तोष करना चाहिए । कि अपने स्थान पर उनकी प्रत्येक पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है । ज्ञान पिपासु पाठक , उपाध्याय जी के सदा ऋणी रहेंगे ।

  • कथा पच्चीसी ( Katha Pachisee )

    स्वामी दर्शनानन्द जी का यह कथा – संकलन उत्प्रेरक है , मर्म – स्पर्शी भी । यह बालोपयोगी भी रहे , इसके लिए अशलीलता – बोधक शब्दों और पात्रों के नाम बदल दिये गए हैं । इसमें पौराणिक और लोक – कथाओं का रोचक वर्णन है । प्रत्येक कथा अंत में मार्मिक उपदेश दे जाती है । इसे सभी आयु के पाठक पढ़ें और ज्ञानार्जन करें , यही स्वामी दर्शनानन्द जी का ध्येय था और यही हमारा उद्देश्य है ।

  • ओंकार निर्णय – Omkar nirnaya By ShivShankar Sharma Kavyatirth

    ओंकार निर्णय नामक पुस्तक आध्यात्मिक स्वाध्याय के लिए अनूठी पुस्तक है । ‘ ओझर ‘ अथवा ‘ ओ ३ म् ‘ के अर्थ , महत्व और उपास्य स्वरूप को समझने के लिए इससे बढ़कर प्रमाण और तर्कयुक्त पुस्तक शायद ही कोई अन्य हो । विद्वान् लेखक ने इस पुस्तक में वेदों , ब्राह्मण ग्रन्थों , उपनिषदों , मनुस्मृति , गीता , व्याकरण आदि वैदिक साहित्य के प्रमाण देकर ‘ ओ ३ म ‘ के अर्थ और महत्व को तो प्रतिपादित किया ही है , साथ ही पुराणों और तन्त्र ग्रन्थों में वर्णित ओ ३ म् के महत्व को भी खोजकर उसको सप्रमाण प्रस्तुत कर दिया है ।

  • एकादशोपनिषद् – Ekadashopnishad

    इस पुस्तक में  जी ने प्रमुख 11 उपनिषदों का सरल हिंदी में सचित्र अनुवाद किया है जिससे सामान्य पाठक गण भी सरलता पूर्वक अध्ययन कर सकें वाह उपनिषदों के तत्वों को आत्मसात कर सकें। इस पुस्तक में एक एक शब्द का संस्कृत में हिंदी अनुवाद भी किया गया है ताकि किसी भी भ्रम की संभावना ना रहे जो भी कठिन टिप्पणी दी गई है उसको सरलता से समझाने का प्रयास किया गया है।

  • ऋषि दयानन्द सिद्धांत और जीवन दर्शन – Rishi Dayanand Siddhant aur Jivan Darshan

    प्रस्तुत ग्रन्थ की विशेषता दयानन्द के सिद्धान्तों और जीवनदर्शन की एक सुस्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करना है । इसे समग्र तथा सर्वागीण बनाना लेखक का प्रमुख ध्येय रहा है । फलतः भारत में यूरोपीय शक्तियों के आगमन तथा दयानन्द के युग की परिस्थितियों के आकलन के पश्चात् नवजागरण आन्दोलन की एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की गई है । दयानन्द के उनसठ वर्षीय जीवनक्रम को प्रस्तुत करने के पश्चात् धर्म , दर्शन , संस्कृति , प्रशासन तथा राजधर्म जैसे विषयों पर उनके सटीक विचारों को उन्हीं के जीवन एवं ग्रन्थों के आधार पर विवेचित किया गया है ।

  • ऋषि दयानन्द के सर्वश्रेष्ठ प्रवचन – Rishi Dayanand Ke Sarvasreshth Pravachan

    अपने युग के अद्वितीय विद्वान् तथा धर्म संशोधक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने स्वजीवन काल में सहस्रों व्याख्यान व प्रवचन दिये , किन्तु महाराष्ट्र की काशी पूर्ण नगरी में दिये गये उनके कतिपय व्याख्यानों के अतिरिक्त उनके अन्य भाषण व प्रवचन न तो लिपिबद्ध हो सके और न उनका विस्तृत विवरण उपलब्ध होता है । इस ग्रन्थ के अध्ययन से स्वामी दयानन्द की व्याख्यान शैली से पाठकों को रूबरू होने का अवसर मिलेगा , साथ ही उनके अपार वैदुष्य , परगामी शास्त्र ज्ञान , उन्कृष्ट तर्क कौशल , वाक्यातुर्य तथा प्रतिपादन कौशल से भी परिचित हो सकेंगे । अनेक ऐसे प्रश्न और प्रसंग जो अन्य ग्रन्थों में व्याख्यात नहीं किये जा सके उन्हे स्वामीजी ने इन व्याख्यानों में स्पष्ट किया है ।

    Edited by Dr. Bhawanilal Bhartiyaji , this is collection of 15 pravachan of Swami dayanand delivered at PUNE . Which also called UPDESH MANJARI

  • ऋषि दयानंद प्रतिपादीत 8 गप्प तथा 8 सत्य – Rishi Dayanand Pratipadit 8 Gappe Tathe 8 Satya

    ऋषि दयानंद की दृष्टि में त्यागने योग्य आठ गप्प थीं ( 1 ) 18 पुराण ( 2 ) पाषाण पूजा , ( 3 ) शैव शाक्तादी संप्रदाय , ( 4 ) तंत्र ग्रंथ , ( 5 ) नशीली वस्तुसेवन , ( 6 ) व्यभिचार , ( 7 ) चोरी , ( 8 ) कपट , छल , अभिमान , मिथ्या भाषण आदि । और स्वीकार करने योग्य आठ सत्य हैं ( 1 ) वेदादि सत्यशास्त्र , ( 2 ) ब्रह्मचर्य पालन , ( 3 ) वेदोक्त वर्णाश्रम धर्म ( 4 ) पंच महायज्ञ , ( 5 ) शम , दम , 5 तप , आदि का सेवन , ( 6 ) विचार , विवके , वैराग्य ग्रहण , ( 7 ) काम , क्रोध , लोभ , मोह आदि का त्याग , ( 8 ) पंच क्लेशों से मुक्त होकर मोक्ष रूपी चरम लक्ष्य की प्राप्ति । ऋषि के इसी क्रांतिकारी चिंतन को डॉ . भवानीलाल भारतीय ने जो विस्तार दिया है वह पठनीय तथा अनुकरणीय है ।

    This is an authentic book from the writer of about sixty books on life and works of Swami Dayananda Saraswati – Dr . Bhawanilal Bhartiya . The readers will get acquainted with the revolutionary ideological thoughts of Swami Dayananda through this book . While on his journey for the cause of Religion , Swami Dayananda expounded Eight baseless notions to be relinquished and Eight Truths to be adopted for peaceful living . The author has elaborated on these thoughts .

  • ऋषि दयानंद के भक्त प्रशासक और सत्संगी – Rishi Dayanand Ke bhakt Prashaashak aur Satsangi

    प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक ने ऐसे 50 व्यक्तियों के जीवनवृत तथा स्वामी दयानन्द से इनके पारस्परिक सम्बन्धों की विवेचना की है , जो भक्त प्रशंसक तथा सत्संगी इन तीन वर्गों में परिगणित किये जा सकते हैं । भक्त से हमारा अभिप्राय उन लोगों से है जो स्वामी दयानन्द के महनीय व्यक्तित्व तथा उनकी लोकहित युक्त भावनाओं के प्रति प्रणतभाव रखते थे । यह आवश्यक नहीं कि ऐसे लोग पूर्णतया वैदिक विचारधारा के अनुयायी ही रहे हों । प्रशंसकों की श्रेणी में वे लोग हैं जो पौराणिक विश्वासों के प्रति निष्ठा रखने वाले उस सनातनी वर्ग के नेता थे जिनसे स्वामी जी का दीर्घकाल पर्यन्त संघ वर्ष तथा प्रतिद्वन्द्विता चलती रही । सत्संगी वर्ग में हम उन लोगों की गणना कर सकते हैं जो विचारों और आस्थाओं में स्वामी जी से कोसों दूर होते हुए भी स्वामी दयानन्द का सत्संग लाभ करना परम उपयोगी मानते थे और उन्हें देश एवं जाति का हित चिन्तक समझते थे ।

    In the present book the author has included life sketch of 50 great personalities and details of their mutual relations with Maharishi Dayanand Saraswati . These personalities can be categorized as Devotees , Admirer and who came in regular contact with Swami Dayanand .

  • ऋषि दयानंद का तत्त्व दर्शन – Rishi Dayanand ka Tatva Darshan

    पं . गंगाप्रसाद उपाध्याय अंग्रेजी में लिखित ‘ फिलोसॉफी ऑफ दयानन्द ‘ का हिन्दी अनुवाद । यह ग्रन्थ निराला है । इसकी शैली भी निराली है । सम्पूर्ण आर्य साहित्य में हमारे किसी भी दार्शनिक साहित्यकार ने इतनी सहज , सरल तथा स्वाभाविक युक्तियों से वैदिक सिद्धान्तों का मण्डन नहीं किया जो आपको इस ग्रन्थ में मिलेगा । उपाध्यायजी की हुछ विषयों पर मौलिक व्याख्याएं अत्यन्त दय स्पर्शी हैं । निस्सन्देह ऋषि दयानन्द की विचार धारा के अध्ययन से वर्तमान एवं भविष्य , दोनों युग लसभान्वित होते रहेंगे ।

    Translation of PHILOSOPHY OF DAYANAND by Pt . Ganga Prasad Upadyaya . Find the philosophy that is live , dynamic & positive . The philosophy of Dayanand rests on the self – evident Vedas , and not on the conditional evidences . The book speaks of the contemplative truths combined with scientific facts .

  • ऋषि दयानंद और आर्यसमाज ( भाग – १ ) – Rishi Dayanand aur Aryasamaj (Part 1)

    ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज ( भाग – १ ) ( सिद्धान्त खण्ड ) तथा भाग – २ ( समीक्षा खण्ड ) नामक मेरी अभिनव पुस्तक जनता जनार्दन के समक्ष प्रस्तुत है । इस नाम से दो खण्डों में पुस्तक प्रकाशन की योजना आज से लगभग आठ वर्ष पूर्व मेरे मन में आई थी , वह आज कार्यरूप में परिणत हो रही है । इसकी पृष्ठभूमि में मेरी सोच यह थी कि आज के सुपठित समाज में कोई एक ग्रन्थ ऐसा होना चाहिए जिसमें ऋषि दयानन्द संपोषित वैदिक धर्म की लगभग सभी मान्यताओं का तर्क प्रमाण पुरस्सर सुस्पष्ट प्रतिपादन हिन्दी भाषा में किया गया हो । इस एक ग्रन्थ को पढ़ने से ही ऋषि दयानन्द की वैदिक – दार्शनिक – आध्यात्मिक – याज्ञिक – सामाजिक – शैक्षणिक तथा राष्ट्रीय विचारों की सम्यक् जानकारी हो जाए । – डॉ . ज्वलंत कुमार शास्त्री

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