• India In The Shadow Of Gandhi and Nehru (In English) Guru Dutt

    In the year 1966, Guru Dutt worte a book under the title of ‘Jawaharlal Nehru—a Critical Study’. The book was so controversial that it gave rise to the rumour that it had been proscribed by the Government of India. In 1967 certain newspapers did come out with the news that steps were in progress to proscribe the book and prosecute its author. However, nothing of the kind took place.

    The present book is a deep study of the words and deeds of Nehru and Gandhi.

    The author has taken great pains in critically studying the activities and philosophies of these two eminent personalities of our country and placing before the reader the other side of the picture. His thesis is based on works of Nehru himself and also on works of other eminent writers of the day. He was referred to more than 200 quotations which support and lead to his logical analysis. How far he succeeded in piercing through the many walls of prejudices which sustain the pet notions about, them it is for the reader to ponder and judge.

  • Christianity Is Chrisn-Nity (In English)- PN Oak

    Their fears were obviously well-founded as it turned out later from the way Christianity put Judaism in the shade and crushed and buried the colourful pre-Christian culture of Rome.

    During that interregnum of nearly four centuries the agitators were from time to time reported to the Roman officials by the Jews, and were punished for their crimes.

    The Jews reported the agitators to the Roman authorities because they were disturbing the peace by fanatically and violently spreading the myth of Jesus. On this pat the Roman magistrates obliged to take action to prevent or quell those new riots.

  • आपको-अपने जीवन में क्या करना है? – Aapko Apne jivan mein kya karna hai ? By J. Krishnamurthy

    जिस तरीके से आप और मैं अपने – अपने मस्तिष्क से जुड़े हैं , आपस में जुड़े हैं , निजी आधिपत्य की अपनी वस्तुओं से जुड़े हैं , धन , कर्म और सेक्स से जुड़े हैं – यह जुड़ाव , यह सन्निकट संबंध ही समाज का निर्माण करते हैं । स्वयं अपने से संबंध और पारस्परिक संबंधों को छह अरब से गुणा कर देते ही यह संसार बन जाता है । हम ही संसार हैं – हममें से प्रत्येक के पूर्वाग्रहों का संचयन , हममें से प्रत्येक के पृथक अकेलेपन का एकत्रीकरण , प्रत्येक की लोभी महत्त्वाकांक्षा , प्रत्येक की शारीरिक और भावनात्मक भूख , हममें से प्रत्येक में विद्यमान क्रोध और उदासी यही हम हैं और यही संसार । संसार हमसे कुछ भिन्न नहीं है । हम ही संसार हैं , तो सीधी – सी बात है कि यदि हम बदलें , हममें से प्रत्येक स्वयं में परिवर्तन करे , तो हम संसार को परिवर्तित कर सकते हैं । यदि हममें से केवल एक भी परिवर्तित होता है तो समाज में कुछ छिड़ता है । भलाई दूसरों को छूती है , फैलती है । स्कूल में हमें अपने अभिभावकों व अध्यापकों को सुनना सिखाया जाता हैं । तकनीकी तौर पर यह सार्थक है , परंतु मनोवैज्ञानिक तौर पर हज़ारों पीढ़ियों बाद भी हम यह नहीं सीख पाये हैं कि स्वयं दुखी होना और दूसरों को दुख देना- इसे कैसे रोका जाये । अपने भौतिक और वैज्ञानिक विकास के अनुपात में मनोवैज्ञानिक विकास हम नहीं कर पाये हैं ।

  • ऋषि दयानंद का तत्त्व दर्शन – Rishi Dayanand ka Tatva Darshan

    पं . गंगाप्रसाद उपाध्याय अंग्रेजी में लिखित ‘ फिलोसॉफी ऑफ दयानन्द ‘ का हिन्दी अनुवाद । यह ग्रन्थ निराला है । इसकी शैली भी निराली है । सम्पूर्ण आर्य साहित्य में हमारे किसी भी दार्शनिक साहित्यकार ने इतनी सहज , सरल तथा स्वाभाविक युक्तियों से वैदिक सिद्धान्तों का मण्डन नहीं किया जो आपको इस ग्रन्थ में मिलेगा । उपाध्यायजी की हुछ विषयों पर मौलिक व्याख्याएं अत्यन्त दय स्पर्शी हैं । निस्सन्देह ऋषि दयानन्द की विचार धारा के अध्ययन से वर्तमान एवं भविष्य , दोनों युग लसभान्वित होते रहेंगे ।

    Translation of PHILOSOPHY OF DAYANAND by Pt . Ganga Prasad Upadyaya . Find the philosophy that is live , dynamic & positive . The philosophy of Dayanand rests on the self – evident Vedas , and not on the conditional evidences . The book speaks of the contemplative truths combined with scientific facts .

  • अग्नि की उड़ान- Agni ki Udan

    यह पुस्तक ऐसे समय में प्रकाशित हुई है जब देश की संप्रभुता को बनाए रखने और उसकी सुरक्षा को और मजबूत बनाने के लिए चल रहे तकनीकी प्रयासों को लेकर दुनिया में कई राष्ट्र सवाल उठा रहे हैं । ऐतिहासिक रूप से मानव जाति हमेशा से ही किसी – न – किसी मुद्दे को लेकर आपस में लड़ती रही है । प्रागैतिहासिक काल में युद्ध खाने एवं रहने की जरूरतों के लिए लड़े जाते थे । समय गुजरने के साथ ये युद्ध धर्म तथा विचारधाराओं के आधार पर लड़े जाने लगे और अब युद्ध आर्थिक एवं तकनीकी प्रभुत्व हासिल करने के लिए होने लग गए हैं । नतीजतन , आर्थिक एवं तकनीकी प्रभुत्व राजनीतिक शाक्ति और विश्व नियंत्रण का प्रर्याय बन गया है । पिछले कुछ दशकों में कुछ देश बहुत ही तेजी से प्रौद्योगिकी की दृष्टि से काफी मजबूत होकर उभरे हैं और अपने हितों की पूर्ति के लिए बाकी दुनिया का नियंत्रण लगभग इनके हाथ में चला गया है । इसके चलते ये कुछ एक बड़े देश नए विश्व के स्वयंभू नेता बन गए हैं । ऐसी स्थिति में एक अरब की आबादीवाले भारत जैसे विशाल देश को क्या करना चाहिए ? प्रौद्योगिकी प्रभुता पाने के सिवाय वास्तव में हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है । लेकिन क्या प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत अग्रणी हो सकता है ? मेरा जवाब एक निश्चित ‘ हाँ ‘ है । और अपने जीवन की कछ घटनाओं से मैं अपने इस जवाब की वैधता साबित करने का इस पुस्तक में प्रयत्न करूँगा ।

  • Manusmriti Vishuddh – विशुद्ध मनुस्मृति By Ganga Prasad Upadhyay

    स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्ष ग्रन्थ है । मनुस्मृति के परवर्तीकाल में अनेक स्मृतियाँ प्रकाश में आयीं किन्तु मनुस्मृति के तेज के समक्ष वे अपना प्रभाव न जमा सकीं , जबकि मनुस्मृति का वर्चस्व आज तक पूर्ववत् विद्यमान है । मनुस्मृति में एक ओर मानव समाज के लिए श्रेष्ठतम सांसारिक कर्तव्यों का विधान है , तो साथ ही मानव को मुक्ति प्राप्त कराने वाले आध्यात्मिक उपदेशों का निरूपण भी है , इस प्रकार मनुस्मृति भौतिक एवं आध्यात्मिक आदेशों उपदेशों का मिला – जुला अनूठा शास्त्र है । 

  • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज का विशेष (80%) योगदान- Bhartiye Swatantrata Sangraam mein Arya Samaj ka vishesh (80%) yogadan.

    एक तरफ आर्यसमाज के 80 % जमीनी बलिदानी और दूसरी तरफ केवल 20 % ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की मिलीभगत ! भला विचार तो करें कि आर्यसमाज के बलिदानियों के साथ कितना न्याय हुआ ? भारत के तथाकथित आधुनिक इतिहास की सारी गाथाएँ मोहनदास कर्मचन्द गांधी , जवाहरलाल नेहरू , सरदार वल्लभभाई पटेल , मोहम्मद अली जिन्ना जैसे नेताओं के ही इर्द गिर्द घूमती रही है और वही पढ़ी तथा सुनाई जाती है ।

    इतिहास को तोड़ – मरोड़कर प्रस्तुत करने वाले चन्द इतिहासकारों ने आर्यसमाजियों के बलिदान को भुलाने का जो पाप किया है वह अक्षम्य है । लेकिन आर्यसमाज से जुड़े इतिहासकारों ने अपने प्रयासों द्वारा सच को प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है । मैं इस विषय पर विचार करता हूँ , तो यह मेरी समझ से घोर अन्याय है कि , हमारे बच्चों को आर्यसमाज के योगदान के बारे में कुछ नहीं बताया जाता बल्कि इसका उलटा उन्हें यही पढ़ाया और रटाया जाता है कि भारत को आजादी केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने ही दिलाई ।

    यह तथ्य सच्चाई से कोसों दूर है । बच्चों को इस तरह का पाठ पढ़ाना अनैतिक होने के साथ – साथ उन्हें भ्रमित करना भी है । बिना 80 % आर्यसमाजी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के सहयोग के गांधी जी और नेहरू जी से तो ब्रिटिश सरकार बात भी नहीं करती थी । यह सत्य है कि – ” जिस विपक्ष के पास कोई बड़ी सामूहिक जन – सहयोग व ताकत न हो , उसे कोई सरकार नहीं सुनेगी । ” ( ” Any Goverment will not listen to oppostion which does not have a big majority support of masses . ” )

    शुरू – शुरू में अंग्रेजी सरकार ने भी यही किया । तथाकथित कांग्रेसी नेता सरकार के आगे सिर पटकते रहे कि रौलेट एक्ट वापस ले लो पर किसी ने नहीं सुना । लेकिन जब इसके खिलाफ अमर हुतात्मा स्वामी श्रद्धानन्द जी ने दिल्ली चाँदनी चौक में जुलूस निकाला तो अंग्रेजी सरकार घबरा गई । गोरे सैनिकों ने जुलूस को रोकना चाहा लेकिन स्वामी श्रदानन्द ने अपना सीना तान दिया और गरज उठे गोरे सैनिकों पर- ‘ चलाओ अपनी संगीनें मेरा सीना खुला है । ‘ गोरे सैनिक निडर संन्यासी की सिंह गर्जना सुन दुबक गए । तब आन – बान – शान के साथ जुलूस बढ़ा जो आगे चलकर एक विराट सभा में परिवर्तित हो गया ।

  • काला पानी – Kala Pani (Savarkar)

    काला पानी की यातना एवं त्रासदी आप सभी जानते हैं।
    काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसके नाम से ही ज्ञात होता है।
    विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अतः उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखा वर्णन है। इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का उल्लेख है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे।काला पानी के कैदियों पर को क्रूरतम अत्याचार किए गए, कैसी -कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा उन सभी अश्रु दिला देने वाली घटनाओं का वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्रण भी उकेरा गया है। उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।.

  • What is Veda (Sanatana Foundation of Universal Dharma) By Dr.Tulsi Ram Sharma

    Veda is the Sanatan foundation of Universal Dharma, original, ancient, Sanatan yet modern, living in creative response to the changing circumstances.

    Sanatan Dharma till today has passed through many historical stages: the Original Vedic in what is called the Vedic age, then ritualistic, pure as well as distorted, theistic, even non- theistic, ethical, moral, symbolic, mythological, with even a variety of ‘Gods’ divine and human, until the time of Swami Dayananda and after.

    Beyond this historical variety of Dharma, as Swami Dayananda asserted, this book concentrates on the Original Vedic Dharmik message of Jnana (Knowledge), Karma (active Living), and Upasana (Praise, Prayer and Meditation). It covers the knowledge and modern relevance of creative evolution of the world, material, biological, spiritual and socio-political.

    It covers the Vedic knowledge of Shruti, Smriti, Sadachara and freedom of Conscience, and many other themes such as age of the Vedas, Devata, science, society, karma and the karmic cycle, punarjanma with reference to reincarnation in other traditions.

    Written on the model of Swami Dayananda’s Rgvedadi Bhci`shy a Bhumikci, this book takes into account the change of circumstances while dealing with Vedic themes in relation to present time. In this I.T. age of science, democracy and globalism, you will feel surprised by the modernity of the ancient and the timeless.

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