• “Complete Veda Bhashya” (Hindi) – सम्पूर्ण वेद भाष्य (हिंदी)

    सभी वेदों की अपनी – अपनी विशेषताएँ हैं । वेद संतप्त मानवों को अपूर्व शांति प्रदान करते हैं । आधि – व्याधि और वासनाओं से विक्षुब्ध मानव हृदय वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए आनंदसागर में निमग्न हो जाता है । वेद क्या हैं – वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है और संपूर्ण विश्व के द्वारा वरणीय है । वेद ज्ञान – विज्ञान के अक्षय कोष हैं । वेद संपूर्ण वैदिक वाङ्मय का प्राण हैं । वेदों में तेज , ओज , और वर्चस्व की राशि है ।

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  • ऋग्वेद सम्पूर्ण (4 भाग) Rigveda Complete (4 Volumes) By: Swami Dayanand Saraswati

    मन्त्र , शब्दार्थ , भावार्थ तथा मन्त्रानुक्रमणिका सहित प्रस्तुत । मन्त्र भाग स्वामी जगदीश्वरानन्दजी द्वारा सम्पादित मूल वेद संहिताओं से लिया गया है । चारों वेदों में आकार की दृष्टि से ऋग्वेद सब से बड़ा है । यह दस मण्डलों , 1028 सूक्तों तथा 10589 मन्त्रों में समाहित है । दर्शन , धर्म , अध्यात्म शास्त्र , नीति एवम् आचार शास्त्र , लौकिक ज्ञान विज्ञान , मानव के हित में ऐसी कोई ज्ञान की शाखा या विधा नहीं है जिसकी चर्चा वेदों में न आई हो । ” संसार के पुस्तकालय में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है , इस बात को सभी पाश्चात्य विद्वानों ने स्वीकार किया है । भारत की धार्मिक परम्परा चारों वेदों को परमात्मा का अनादि ज्ञान मानती है जो सृष्टि के आरम्भ में मानव जाति के हितार्थ ऋषियों के माध्यम से दिया गया था । ऋग्वेद का प्रकाश अग्नि ऋषि के हृदय में हुआ था । ऋग्वेद की महिमा का वर्णन करते हुए मैक्समूलर ने कहा- जब तक पृथिवी पर पर्वत और नदियाँ रहेंगी तब तक संसार के मनुष्यों में ऋग्वेद की कीर्ति का प्रचार रहेगा ।

    ऋग्वेद विज्ञानवेद है । इसमें तृण से लेकर ईश्वरपर्यन्त सब पदार्थों का विज्ञान भरा हुआ है । प्रकृति क्या है ? जीव क्या है ? जीव का उद्देश्य क्या है और उस लक्ष्य प्राप्ति के साधन क्या हैं ? ईश्वर का स्वरूप क्या है ? उसकी प्राप्ति क्यों आवश्यक है और वह किस प्रकार हो सकती है ? इत्यादि सभी बातों का वर्णन ऋग्वेद में मिलेगा । महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद का भाष्य करना प्रारम्भ किया था , परन्तु वह पूर्ण न हो सका । स्वामीजी सातवें मण्डल के 61 वें सूक्त के दूसरे मन्त्र तक ही भाष्य कर पाये । आगे का भाष्य उन्हीं की शैली में अन्य वैदिक विद्वानों ने पूर्ण किया । ऋग्वेद के दो ब्राह्मण हैं ‘ ऐतरेय ‘ और ‘ कौषीतकी ‘ । इसका उपवेद आयुर्वेद है ।

     Complete Rigveda Bhashya ( 10589 Hymns ) , Computerized for the first time , Accurate Matter , Clean and Charming Printing , Attractive Cover , Good Quality Paper , Hard Bound Binding , Beautiful Type Font , with Word Meaning and List of Mantras at the end Rigveda says- light the fire of life , ignite the cosmic Energy , and receive the Enlightenment of the Life Divine : Move together forward in unison , speak together , and with equal mind all in accord , know you all together as the sages of old , knowing and doing together , play their part in life and fulfil their duty according to Dharma . -Rg .

  • *पी.एनओक साहित्य संग्रह – P. N Oak Complete Sahitya Sangrah

    Sanatan Haat देश के हित में कार्यों के साथ ही वैदिकधर्मियों और भारत के सत्य इतिहास की पुस्तकों का भी प्रचार करता है। लोगो तक उनका सत्य इतिहास पहुँचे इसी कडी में आप Sanatanhaat.com से पुरूषोत्तम नागेश ओक ( P. N Oak ) द्वारा लिखित निम्न पुस्तके उचित मूल्य पर घर बैठे मंगा सकते है।

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  • अथर्ववेद Atharvaveda By: Kshemkaran Das Trivedi

    वेद चतुष्टय में अथर्ववेद अन्तिम है । परमात्मा प्रदत्त इस दिव्य ज्ञान का साक्षात्कार सृष्टि के आरम्भ में महर्षि अंगिरा ने किया था । इसमें 20 काण्ड , 111 अनुवाक , 731 सूक्त तथा 5977 मन्त्र है । वस्तुत : अथर्ववेद को नाना ज्ञान – विज्ञान समन्वित बृहद् विश्वकोश कहा जा सकता है । मनुष्योपयोगी ऐसी कौन – सी विद्या है जिससे सम्बन्धित मन्त्र इसमें न हों । लघु कीट पंतग से लेकर परमात्मा पर्यन्त पदार्थों का इन मन्त्रों में सम्यक् विवेचन हुआ है । केनसूक्त , उच्छिष्टसूक्त , स्कम्भसूक्त , पुरुषसूक्त जैसे अथर्ववेद में आये विभिन्न सूक्त विश्वाधार परमात्मा की दिव्य सत्ता का चित्ताकर्षक तथा यत्र तत्र काव्यात्मक शैली में वर्णन करते हैं । जीवात्मा , मन , प्राण , शरीर तथा तद्गत इन्द्रियों और मानव के शरीरान्तर्गत विभिन्न अंग प्रत्यगों का तथ्यात्मक विवरण भी इस वेद में है । जहाँ तक लौकिक विद्याओं का सम्बन्ध है , अथर्ववेद में शरीरविज्ञान , मनोविज्ञानं , कामविज्ञान , औषधविज्ञान , चिकित्साविज्ञान , युद्धविद्या , राजनीति , प्रशासन पद्धति आदि के उल्लेख आये हैं । साथ ही कृषिविज्ञान , कीटाणु आदि रोगोत्पादक सूक्ष्म जन्तुओं के भेद – प्रभेद का भी यहाँ विस्तारपूर्वक निरूपण किया गया है । अथर्ववेद की नौ शाखाएँ मानी जाती हैं । इसका ब्राह्मण गोपथ और उपवेद अर्थवेद है ।

  • “महाभारत” Mahabharat By: Swami Jagdishwaranand Sarswati

    महाभारत धर्म का विश्वकोष है । व्यास जी महाराज की घोषणा है कि ‘ जो कुछ यहां है , वही अन्यत्र है , जो यहां नहीं है वह कहीं नहीं है । इसकी महत्ता और गुरुता के कारण इसे पन्चम वेद भी कहा जाता है।

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  • भूमिका भास्कर( दो भागो में ) – Bhumika Bhaskar (In two parts) Part- 1

    महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने वेदभाष्य निर्माण से पूर्व एक विस्तृत भूमिका की रचना की जिसमें अपने वेदभाष्य के उद्देश्यों का स्पष्टीकरण किया । इस ग्रन्थ में ऋषि ने अपने सभी वेदविषयक सिद्धान्तों का विशद् निरूपण किया है । इसमें लगभग पैंतीस शीर्षकों के अन्दर वेद के प्रमुख प्रतिपाद्य पर प्रभूत प्रकाश डाला गया है जिन में से आगे लिखे विषय विशेष उल्लेखनीय – हैं – वेदोत्पत्ति , वेदनित्यत्व , वेदविषय , वेदसंज्ञा , ब्रह्मविद्या , वेदोक्तधर्म , सृष्टिविद्या , पृथिवी आदि का भ्रमण , गणित , मुक्ति , पुनर्जन्म , वर्णाश्रम , पञ्चमहायज्ञ , ग्रन्थप्रामाण्य , वेद के ऋषि – देवता – छन्द – अलंकार – व्याकरण | – – । स्वामी विद्यानन्द सरस्वती आर्यसमाज के संन्यासी विद्वद्वर्ग में अग्रगण्य थे । उनकी लेखनी में ओज तथा प्रवाह था , प्रतिभा के धनी और योजनाबद्ध लेखन कार्य करने की प्रवृत्ति से पूरिपूर्ण थे । ऋषि दयानन्द की उत्तराधिकारिणी परोपकारिणी सभा का सुझाव था कि ऋषि के ग्रन्थों के उक्त वचनों का स्पष्टीकरण और विशद् व्याख्याएँ तैयार कराकर प्रकाशित की जाएं । इसीलिए स्वामी जी ने इस कार्य को करने का संकल्प किया और ‘ भूमिकाभास्कर की संरचना की ।

  • COINAGE IN ANCIENT INDIA

    The application of chemistry to archaeology has grown from small beginnings near the close of the 18th century to become at present a subject of widespread interest. The amount of activity in this special field of study has increased greatly in the last few years. One index of this large recent increase is the proportion of papers, monographs and books on the subject published within the last ten years. About 20% of all publications on the chemical analysis of ancient materials and objects have appeared in this last decade. If the publications on dating by chemical methods and on chemical procedures for the restoration and preservation of ancient objects are also taken into consideration, the proportion in the last ten years rises to about 30%. The present volume by Professor Satya Prakash contains many interesting examples of the application of chemistry to the study of a particular class of ancient objects, and is another indication of the current widespread interest in archaeological chemistry.

  • कलिकालिन भारत – Kalikalin Bharat By Kunj Bihari Jalan

    महाभारत के बाद राजा परीक्षित से श्रीहर्ष ( सम्राट् हर्षवर्धन ) तक का इतिहास बड़े ही शोध के बाद लिखा गया है । यह सन् 2005 ई . से ही लिखा पड़ा है । इन सारे ग्रंथों के शोध और लेखन में जीवन के पचास वर्ष से अधिक का ही समय लग गया है । इस ग्रंथ की कुछ अपनी विशेषताएं हैं । इसमें भारतीय ऋषियों का इतिहास हमने पहली बार अध्याय 1 में दिया है । इसमें लिखा गया सारा इतिहास पुराण साहित्य , महाभारत तथा अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों , पत्र – पत्रिकाओं पर आधारित है । अध्याय 2 से महाभारत के बाद श्री अयोध्या , कौशाम्बी का पौरववंश , इन्द्रप्रस्थ का राजवंश तथा मगध के राजवंशों का वर्णन है । आन्ध्रवंश के बाद भागवत , विष्णु , मत्स्य तथा वायु पुराणों के आधार पर आभीर , गर्दभी शंक ( कंक ) यवन , तुर्क , गुरुण्ड , मीन तथा तुषार , हुण वंशीय राजाओं का इतिहास दिया गया है , पुराणों के अतिरिक्त अन्य इतिहासों में इतना स्पष्ट नहीं है । इनके अतिरिक्त महाभारत से पुलिन्द काम्बोज , वाहीक राजाओं का वर्णन भी इसमें है । इस ग्रंथ की एक और विशेषता यह है कि युधिष्ठिर से लेकर गजनी के सुलतान शाहबुद्धीन गौरी तक के राजवंशों तथा राजाओं ने इन्द्रप्रस्थ ( दिल्ली ) पर कितने वर्ष , कितने मास और दिनों तक राज्य किया , इसकी एक विस्तृत सूची भी अध्याय 5 में दी गई है । साथ ही परिशिष्ट एक और दो में काश्मीर तथा गुजरात के राजाओं की तालिका भी विस्तार के साथ दी गई है । अध्याय 24 में सम्राट् चन्द्रहरि विक्रमादित्य प्रथम , उज्जैन के सम्राट का वर्णन बहुत प्रमाणों के साथ इस ग्रंथ में लिखा गया है , जो अन्य इतिहासों में उपेक्षित रहा है ।

  • A Sanskrit English Dictionary

    The Student’s Sanskrit-English Dictionary: Containing Appendices on Sanskrit Prosody and Important Literary and Geographical Names in the Ancient Hist. of India

  • ऋषि दयानंद और आर्यसमाज ( भाग – १ ) – Rishi Dayanand aur Aryasamaj (Part 1)

    ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज ( भाग – १ ) ( सिद्धान्त खण्ड ) तथा भाग – २ ( समीक्षा खण्ड ) नामक मेरी अभिनव पुस्तक जनता जनार्दन के समक्ष प्रस्तुत है । इस नाम से दो खण्डों में पुस्तक प्रकाशन की योजना आज से लगभग आठ वर्ष पूर्व मेरे मन में आई थी , वह आज कार्यरूप में परिणत हो रही है । इसकी पृष्ठभूमि में मेरी सोच यह थी कि आज के सुपठित समाज में कोई एक ग्रन्थ ऐसा होना चाहिए जिसमें ऋषि दयानन्द संपोषित वैदिक धर्म की लगभग सभी मान्यताओं का तर्क प्रमाण पुरस्सर सुस्पष्ट प्रतिपादन हिन्दी भाषा में किया गया हो । इस एक ग्रन्थ को पढ़ने से ही ऋषि दयानन्द की वैदिक – दार्शनिक – आध्यात्मिक – याज्ञिक – सामाजिक – शैक्षणिक तथा राष्ट्रीय विचारों की सम्यक् जानकारी हो जाए । – डॉ . ज्वलंत कुमार शास्त्री

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