• भूमिका भास्कर( दो भागो में ) – Bhumika Bhaskar (In two parts) Part- 1

    महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने वेदभाष्य निर्माण से पूर्व एक विस्तृत भूमिका की रचना की जिसमें अपने वेदभाष्य के उद्देश्यों का स्पष्टीकरण किया । इस ग्रन्थ में ऋषि ने अपने सभी वेदविषयक सिद्धान्तों का विशद् निरूपण किया है । इसमें लगभग पैंतीस शीर्षकों के अन्दर वेद के प्रमुख प्रतिपाद्य पर प्रभूत प्रकाश डाला गया है जिन में से आगे लिखे विषय विशेष उल्लेखनीय – हैं – वेदोत्पत्ति , वेदनित्यत्व , वेदविषय , वेदसंज्ञा , ब्रह्मविद्या , वेदोक्तधर्म , सृष्टिविद्या , पृथिवी आदि का भ्रमण , गणित , मुक्ति , पुनर्जन्म , वर्णाश्रम , पञ्चमहायज्ञ , ग्रन्थप्रामाण्य , वेद के ऋषि – देवता – छन्द – अलंकार – व्याकरण | – – । स्वामी विद्यानन्द सरस्वती आर्यसमाज के संन्यासी विद्वद्वर्ग में अग्रगण्य थे । उनकी लेखनी में ओज तथा प्रवाह था , प्रतिभा के धनी और योजनाबद्ध लेखन कार्य करने की प्रवृत्ति से पूरिपूर्ण थे । ऋषि दयानन्द की उत्तराधिकारिणी परोपकारिणी सभा का सुझाव था कि ऋषि के ग्रन्थों के उक्त वचनों का स्पष्टीकरण और विशद् व्याख्याएँ तैयार कराकर प्रकाशित की जाएं । इसीलिए स्वामी जी ने इस कार्य को करने का संकल्प किया और ‘ भूमिकाभास्कर की संरचना की ।

  • COINAGE IN ANCIENT INDIA

    The application of chemistry to archaeology has grown from small beginnings near the close of the 18th century to become at present a subject of widespread interest. The amount of activity in this special field of study has increased greatly in the last few years. One index of this large recent increase is the proportion of papers, monographs and books on the subject published within the last ten years. About 20% of all publications on the chemical analysis of ancient materials and objects have appeared in this last decade. If the publications on dating by chemical methods and on chemical procedures for the restoration and preservation of ancient objects are also taken into consideration, the proportion in the last ten years rises to about 30%. The present volume by Professor Satya Prakash contains many interesting examples of the application of chemistry to the study of a particular class of ancient objects, and is another indication of the current widespread interest in archaeological chemistry.

  • कलिकालिन भारत – Kalikalin Bharat By Kunj Bihari Jalan

    महाभारत के बाद राजा परीक्षित से श्रीहर्ष ( सम्राट् हर्षवर्धन ) तक का इतिहास बड़े ही शोध के बाद लिखा गया है । यह सन् 2005 ई . से ही लिखा पड़ा है । इन सारे ग्रंथों के शोध और लेखन में जीवन के पचास वर्ष से अधिक का ही समय लग गया है । इस ग्रंथ की कुछ अपनी विशेषताएं हैं । इसमें भारतीय ऋषियों का इतिहास हमने पहली बार अध्याय 1 में दिया है । इसमें लिखा गया सारा इतिहास पुराण साहित्य , महाभारत तथा अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों , पत्र – पत्रिकाओं पर आधारित है । अध्याय 2 से महाभारत के बाद श्री अयोध्या , कौशाम्बी का पौरववंश , इन्द्रप्रस्थ का राजवंश तथा मगध के राजवंशों का वर्णन है । आन्ध्रवंश के बाद भागवत , विष्णु , मत्स्य तथा वायु पुराणों के आधार पर आभीर , गर्दभी शंक ( कंक ) यवन , तुर्क , गुरुण्ड , मीन तथा तुषार , हुण वंशीय राजाओं का इतिहास दिया गया है , पुराणों के अतिरिक्त अन्य इतिहासों में इतना स्पष्ट नहीं है । इनके अतिरिक्त महाभारत से पुलिन्द काम्बोज , वाहीक राजाओं का वर्णन भी इसमें है । इस ग्रंथ की एक और विशेषता यह है कि युधिष्ठिर से लेकर गजनी के सुलतान शाहबुद्धीन गौरी तक के राजवंशों तथा राजाओं ने इन्द्रप्रस्थ ( दिल्ली ) पर कितने वर्ष , कितने मास और दिनों तक राज्य किया , इसकी एक विस्तृत सूची भी अध्याय 5 में दी गई है । साथ ही परिशिष्ट एक और दो में काश्मीर तथा गुजरात के राजाओं की तालिका भी विस्तार के साथ दी गई है । अध्याय 24 में सम्राट् चन्द्रहरि विक्रमादित्य प्रथम , उज्जैन के सम्राट का वर्णन बहुत प्रमाणों के साथ इस ग्रंथ में लिखा गया है , जो अन्य इतिहासों में उपेक्षित रहा है ।

  • A Sanskrit English Dictionary

    The Student’s Sanskrit-English Dictionary: Containing Appendices on Sanskrit Prosody and Important Literary and Geographical Names in the Ancient Hist. of India

  • ऋषि दयानंद और आर्यसमाज ( भाग – १ ) – Rishi Dayanand aur Aryasamaj (Part 1)

    ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज ( भाग – १ ) ( सिद्धान्त खण्ड ) तथा भाग – २ ( समीक्षा खण्ड ) नामक मेरी अभिनव पुस्तक जनता जनार्दन के समक्ष प्रस्तुत है । इस नाम से दो खण्डों में पुस्तक प्रकाशन की योजना आज से लगभग आठ वर्ष पूर्व मेरे मन में आई थी , वह आज कार्यरूप में परिणत हो रही है । इसकी पृष्ठभूमि में मेरी सोच यह थी कि आज के सुपठित समाज में कोई एक ग्रन्थ ऐसा होना चाहिए जिसमें ऋषि दयानन्द संपोषित वैदिक धर्म की लगभग सभी मान्यताओं का तर्क प्रमाण पुरस्सर सुस्पष्ट प्रतिपादन हिन्दी भाषा में किया गया हो । इस एक ग्रन्थ को पढ़ने से ही ऋषि दयानन्द की वैदिक – दार्शनिक – आध्यात्मिक – याज्ञिक – सामाजिक – शैक्षणिक तथा राष्ट्रीय विचारों की सम्यक् जानकारी हो जाए । – डॉ . ज्वलंत कुमार शास्त्री

  • एकादशोपनिषद् – Ekadashopnishad

    इस पुस्तक में  जी ने प्रमुख 11 उपनिषदों का सरल हिंदी में सचित्र अनुवाद किया है जिससे सामान्य पाठक गण भी सरलता पूर्वक अध्ययन कर सकें वाह उपनिषदों के तत्वों को आत्मसात कर सकें। इस पुस्तक में एक एक शब्द का संस्कृत में हिंदी अनुवाद भी किया गया है ताकि किसी भी भ्रम की संभावना ना रहे जो भी कठिन टिप्पणी दी गई है उसको सरलता से समझाने का प्रयास किया गया है।

  • उपनिषद रहस्य- एकादशोपनिशद Upnishad Rahasya – Ekadashopnishad By: Mahatma Narayan Swami

    उपनिषद् शब्द का एक अर्थ ‘ रहस्य ‘ भी है । उपनिषद् अथवा ब्रह्म विद्या अत्यन्त गूढ़ होने के कारण साधारण विद्याओं की भाँति हस्तगत नहीं हो सकती , इन्हें ‘ रहस्य ‘ कहा जाता है । इन रहस्यों को उजागर करने वालों में महात्मा नारायण स्वामीजी का नाम उल्लेखनीय है । उपनिषदों में ब्रह्म और आत्मा की बात इतनी अच्छी प्रकार से समझाई गई है कि सामान्य बुद्धि वाले भी उसका विषय समझ लेते हैं । महात्मा नारायण स्वामीजी ने अनेक स्थानों पर सरल , सुबोध तथा रोचक कथाएँ प्रस्तुत कर इन्हें उपयोगी बना दिया है । वास्तव में उपनिषदों में विवेचित ब्रह्मविद्या का मूलाधार तो वेद ही हैं । इस सम्बन्ध में महर्षि दयानन्दजी कहते हैं- ” वेदों में पराविद्या न होती , तो ‘ केन ‘ आदि उपनिषदें कहाँ से आतीं ? ” आइए ग्यारह उपनिषदों के माध्यम से मानवीय भारतीय चिन्तन की एक झाँकी लें ।

    The word Upanishad means the setting down of the disciple near his teacher in a devoted manner to receive instruction about the Highest Reality which loosens all doubts and destroys all ignorance of the disciple. The Author translated these Upanishads according to the philosophy of Svami Dayanand Sarasvati. Authentic and Lucid Hindi translation all of Eleven Upanishads by a great vedic scholar and Mahatma Narain Swami, will clarify many doubts regarding the principles of the Upanishads and will show a new path to the admirers and readers of the Upanishads.

  • वाल्मीकि रामायण Valmiki Ramayan By: Swami Jagdishwaranand Sarswati

    स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती आर्य जगत् के सुप्रसिद्ध विद्वान् , निरन्तर साहित्य साधना में संलग्न , रामायण के समालोचक एवं मर्मज्ञ लेखक थे । इस पुस्तक द्वारा आप अपने प्राचीन गौरवमय इतिहास की झांकी , मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन का अध्ययन , प्राचीन राज्यव्यवस्था का स्वरुप देख सकते हैं । – यदि आप भ्रातृ – प्रेम नारी- गौरव आदर्श सेवक , आदर्श मित्र , आदर्श राज्य , आदर्श पुत्र के स्वरुपों का अवलोकन या आप रामायण का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहते हैं तो यह रामायण अवश्य पढ़ें । यह ग्रन्थ सैकड़ों टिप्पणियों से समलंकृत सम्पूर्ण रामायण 7000 श्लोकों में पूर्ण हुआ है ।

    Commentary by Swami Jagdishwaranand,  After reading this edition you will emerge with greater courage , stronger will and purer mind. It contains selected shalokas out of the thousands of them which the author analyzed to be of Maharshi Valmiki . You will find the appeal and freshness of this epic poem transcend all limitation imposed by time , space , age , caste , creed , society and language . Swamiji revised this edition and suggested to include some authentic pictures . Now this is revised & computerized.

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