• गोकरुणानिधि (Gokarunanidhi)

    महर्षि दयानन्द ने सभी पशुओं की हिंसा रोककर उनकी रक्षा करने के उद्देश्य से यह पुस्तक लिखी । चूँकि गौंओं के दूध तथा बैलों से सबसे अधिक हित होता है , अतः उन्होंने गौ की रक्षा पर अधिक बल दिया । वैसे सभी पशुओं की सुरक्षा के लिए लिखा है ।

    100 – 100 प्रतियाँ खरीद कर अपने परिचितों व मित्रों में बाँटिये ।

  • गीत भण्डार – Geet Bhandar By Nandlal Vanprasthi

    प्रस्तुत इन गीतों में मानवीय मूल्य हमें अनमोल सन्देश दे रहे हैं मनुष्य को आवश्यक है कि चुन – चुन कर अपने दोषों को त्यागता जा और संकल्पपूर्वक एक – एक सद्गुण को धारण करता जाये । यदि गी में मानवीय मूल्य न हों तो वह व्यर्थ हैं । यहां किसी अनाम कवि की पंक्तियां ध्यान देने योग्य हैं चाहे जितना रूप भरा हो , गन्ध नहीं तो सुमन व्यर्थ है । चाहे जीवन – भर मिलना हो , स्नेह नहीं तो मिलना व्यर्थ है । उमड़ पड़ा न दर्द देख जो सुन्दरतम् वह नयन व्यर्थ है । छू न सका जो हृदय किसी का , उस रचना का सृजन व्यर्थ है ।। हृदय कभी न जिसे स्वीकारा , उसके सम्मुख नमन व्यर्थ है । डाली – डाली जहां न पुष्पित , उसको कहना चमन व्यर्थ है ।

    प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे भजन हैं जो प्रभात फेरी या सभा – समारो में अकेले अथवा सामूहिक रूप से गाये जा सकते हैं । इन्हें लोकप्रि धुनों पर भी गाया जा सकता है । इसके पहले भाग में भगवद् – भक्ति के गीत हैं , जिन्हें छात्र – छात्रा स्त्री – पुरूष , पारिवारिक या सामाजिक सत्संग में गा सकें । दि दयानन्द की महिमा के कुछ गाने अलग से सम्मिलित किये गए है राष्ट्रीय गीतों को भी समुचित स्थान दिया गया है । हास्य – व्यंग के कु ऐसे मजेदार गीत भी इस संकलन में हैं , जो मनोरंजन भी करेंगे उत्प्रेरक भी सिद्ध होंगे । अन्त में ” जागरण ” का बोध देने वाले गी को रखा गया है । वैदिक विचारधारा के प्रचार में इन गीतों को सारे विश्व गाया – सुनाया जाये , इस आग्रह के साथ यह ” गीत भण्डार ” आप हाथों में सौंपा जा रहा है ।

  • खट्टे मीठे चरपरे – Khatte meethe Charpare By Narendra vidhyavachaspati

    संसार के सभी लोगों को यह सत्य स्वीकारना पड़ा है कि अतीत सदा सुहाना होता है । इसी तथ्य को अंग्रेजों ने अपने अंदाज में कहा है कि ‘ पास्ट इज़ ऑलवेज़ प्लैजेंट । जीवन में कभी ऐसे भी हालात बने कि मन खट्टा हो गया , कभी अपनों ने ऐसा फटकारा – दुत्कारा कि सीधे दिल पर आघात लगे , कभी मौत के मुँह में ऐसे फँसे कि बचना मुहाल हो गया , कभी दुश्मन ने ऐसा दुलारा कि जीवन में शहद की . मिठास घुल गई , कभी छोटी – सी बालिका ने ‘ पिस्तौलों वाली अटैची ‘ थाम कर जान सांसत में डाल दी , कभी वहम के रोग ने ऐसा तिगुनी का नाच नचाया कि जीवन नरक बन गया । ऐसा भी हुआ कि कनस्तर से आटा गायब होने लगा , घर से रुपये – पैसे उड़ने लगे , रसोई से दालें – चावल उड़नछू होते रहे , परन्तु चोर कभी रंगे हाथों पक में नहीं आया । ये संस्मरण पंडितराज नरेन्द्र विद्यावाचस्पति के हैं जो इतने मनोरंजक हैं कि पढ़ते – सुनते रुलाते भी हैं , हँसाते भी हैं । गोआ , नेपाल , पूर्वाचल , उत्तरांचल , कूर्माचल और अण्डमान के संस्मरण हमारे राष्ट्र का ऐसा इतिहास दर्शाते हैं ।

  • क्रिशिचयनिटी कृष्ण नीति है-Christianity Krishan-neeti hai (HINDI) PN Oak

    इस पुस्तक के शीर्षक ” क्रिशिचयनिटी ” कृष्ण – नीति है ‘ से पाठको में मिश्रित प्रतिक्रिया उत्पन्न होने की सम्भावना है । उनमें से अधिकांश सम्भवतया छलित एवं भ्रमित अनुभव करते हुए आश्चर्य करेंगे कि । नीति क्या हो सकती है और यह किस प्रकार क्रिशिचयनिटी की ओर अग्रसर हुई होगी।

    यह सामान्य मानव धारणा है । किसी भी नई पुस्तक को उठाने पर यह समझा जाता है कि इसमें कुछ नया कहा गया है । और जब वह पुस्तक वास्तव में कुछ तथा कहती है तो उसकी प्रतिक्रिया होती है- ” क्या हास्यास्पद कथन है , ऐसी बात हमने कभी सुनी ही नहीं । ” कहना होगा कि भले हो कोई उसे समझने का बहाना बना रहा हो , किन्तु वह अपने मन और बुद्धि से उससे तब ही सहमत होता है जबकि वह उसकी अपनी धारणाओं से मेल खाता हो । यहाँ पर यह सिद्धान्त लागू होता है कि यदि किसी को स्नान का भरपुर आनन्द लेना हो तो उसे पूर्णतया नग्म रूप में जल में प्रविष्ट होना होगा । इसी प्रकार यदि किसी नए सिद्धान्त को पूर्णतया समझता है तो उसे अपने मस्तिष्क को समस्त अवधारणाओं , अवरोधों , शंकाओं , पक्षपातों , पूर्व धारणाओं , अनुमानों एवं सम्भावनाओं से मुक्त करना होगा । ऐसी सर्व सामान्य धारणाओं में आजकल एक धारणा यह भी है कि ईसाइयत एक धर्म है , जिसकी स्थापना जीसस काइस्ट ने की थी । यह पुस्तक यह सिद्ध करने के लिए है कि ‘ जीसस ‘ नाम का कोई था ही नहीं , इसलिए कोई ईसाइयत भी नहीं हो सकती । यदि इस प्रकार की सम्भावना से आपको किसी प्रकार की कपकपी नहीं होती है तो तभी आप इस पुस्तक के पारदर्शी सिद्धान्तरूपी जल में अवगाहन का आनद उठा सकते हैं , जोकि गर्मागर्म साक्ष्यो और मनभावन तर्को से सुवासित किया गया है।

  • क्रांतिकारी सावरकर – Krantikari Sawarkar (Freedom Fighter)

    युगपुरुष वीर विनायक दामोदर सावरकर एक हिन्दुत्ववादी राजनितिक चिंतक और स्वतन्त्रता सेनानी रहे है । अपने इन विचारों को अभिव्यक्त करने में उन्होंने कभी किसी प्रकार का संकोच नहीं किया । वह अपने प्रारंभिक विद्दार्थी जीवन से ही स्वाधीन भारत के स्वप्न देखने लगे थे । उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन जाने पर भी स्वाधीन भारत की इच्छा उन्हें क्रांतिकारियों के संपर्क में ले गयी कन्तिकारी गतिविधियों ने मान पर बड़ी बनाकर भारत लए गए । मार्ग में जहाज से समुन्द्र में कुठे पड़ना उनकी अदम्य इच्छाशक्ति ठउत्कट देशप्रेम का परिचायक है । भारत में जीवन पर्यन्त कठोर कारावास का दण्ड मिलने पर कालापानी भेजे गए , किन्तु कालेपानी की नारकीय यंत्रणाएँ भी उन्हें अपने लक्ष्य से विचलित नहीं कर सकी । भारत स्वतन्त्र हुआ , किन्तु उसके दो भाग कर दिए गए , अतः इस स्वतन्त्रता को वीर सावरकर ने अधूरी स्वतन्त्रता मन और पने जीवन में अंतिम वर्षों तक अखंड भारत का साप्न देखते रहे उनका यह उत्कट देश प्रेम भारतियों के लिए चिरकाल तक एक प्रेरणा स्त्रोत बना रहेगा ।

  • क्रांतिकारी महिलाएं – Krantikari Mahilaye By Murarilal Goyal

    देश की धरती ने देश को अनेक वीरांगनायें प्रदान की है । झांसी की रानी, लक्ष्मी बाई की वीरता की दस्तान तो हर जुबान पर चढ़ी हुई है पर रानी दुर्गावती , रानी पेठगम्मा , बेगम हजरत ग्रहल , रजिया सुल्तान , इन्दिरा गांधी के नामों को भी मुलाया नहीं जा सकता । इनके अलावा अन्य वीरांगनाओं का इतिहास भी कम गौरवपूर्ण नहीं है । उन सभी को पुस्तक में यथेष्ठ स्थान दिया गया है । यह पुस्तक देश की वीर नारियों की गौरवगाथा का दिग्दर्शन कराती है ।

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