• ओंकार निर्णय – Omkar nirnaya By ShivShankar Sharma Kavyatirth

    ओंकार निर्णय नामक पुस्तक आध्यात्मिक स्वाध्याय के लिए अनूठी पुस्तक है । ‘ ओझर ‘ अथवा ‘ ओ ३ म् ‘ के अर्थ , महत्व और उपास्य स्वरूप को समझने के लिए इससे बढ़कर प्रमाण और तर्कयुक्त पुस्तक शायद ही कोई अन्य हो । विद्वान् लेखक ने इस पुस्तक में वेदों , ब्राह्मण ग्रन्थों , उपनिषदों , मनुस्मृति , गीता , व्याकरण आदि वैदिक साहित्य के प्रमाण देकर ‘ ओ ३ म ‘ के अर्थ और महत्व को तो प्रतिपादित किया ही है , साथ ही पुराणों और तन्त्र ग्रन्थों में वर्णित ओ ३ म् के महत्व को भी खोजकर उसको सप्रमाण प्रस्तुत कर दिया है ।

  • एकादशोपनिषद् – Ekadashopnishad

    इस पुस्तक में  जी ने प्रमुख 11 उपनिषदों का सरल हिंदी में सचित्र अनुवाद किया है जिससे सामान्य पाठक गण भी सरलता पूर्वक अध्ययन कर सकें वाह उपनिषदों के तत्वों को आत्मसात कर सकें। इस पुस्तक में एक एक शब्द का संस्कृत में हिंदी अनुवाद भी किया गया है ताकि किसी भी भ्रम की संभावना ना रहे जो भी कठिन टिप्पणी दी गई है उसको सरलता से समझाने का प्रयास किया गया है।

  • ऋषि दयानन्द सिद्धांत और जीवन दर्शन – Rishi Dayanand Siddhant aur Jivan Darshan

    प्रस्तुत ग्रन्थ की विशेषता दयानन्द के सिद्धान्तों और जीवनदर्शन की एक सुस्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करना है । इसे समग्र तथा सर्वागीण बनाना लेखक का प्रमुख ध्येय रहा है । फलतः भारत में यूरोपीय शक्तियों के आगमन तथा दयानन्द के युग की परिस्थितियों के आकलन के पश्चात् नवजागरण आन्दोलन की एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की गई है । दयानन्द के उनसठ वर्षीय जीवनक्रम को प्रस्तुत करने के पश्चात् धर्म , दर्शन , संस्कृति , प्रशासन तथा राजधर्म जैसे विषयों पर उनके सटीक विचारों को उन्हीं के जीवन एवं ग्रन्थों के आधार पर विवेचित किया गया है ।

  • ऋषि दयानन्द के सर्वश्रेष्ठ प्रवचन – Rishi Dayanand Ke Sarvasreshth Pravachan

    अपने युग के अद्वितीय विद्वान् तथा धर्म संशोधक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने स्वजीवन काल में सहस्रों व्याख्यान व प्रवचन दिये , किन्तु महाराष्ट्र की काशी पूर्ण नगरी में दिये गये उनके कतिपय व्याख्यानों के अतिरिक्त उनके अन्य भाषण व प्रवचन न तो लिपिबद्ध हो सके और न उनका विस्तृत विवरण उपलब्ध होता है । इस ग्रन्थ के अध्ययन से स्वामी दयानन्द की व्याख्यान शैली से पाठकों को रूबरू होने का अवसर मिलेगा , साथ ही उनके अपार वैदुष्य , परगामी शास्त्र ज्ञान , उन्कृष्ट तर्क कौशल , वाक्यातुर्य तथा प्रतिपादन कौशल से भी परिचित हो सकेंगे । अनेक ऐसे प्रश्न और प्रसंग जो अन्य ग्रन्थों में व्याख्यात नहीं किये जा सके उन्हे स्वामीजी ने इन व्याख्यानों में स्पष्ट किया है ।

    Edited by Dr. Bhawanilal Bhartiyaji , this is collection of 15 pravachan of Swami dayanand delivered at PUNE . Which also called UPDESH MANJARI

  • ऋषि दयानंद प्रतिपादीत 8 गप्प तथा 8 सत्य – Rishi Dayanand Pratipadit 8 Gappe Tathe 8 Satya

    ऋषि दयानंद की दृष्टि में त्यागने योग्य आठ गप्प थीं ( 1 ) 18 पुराण ( 2 ) पाषाण पूजा , ( 3 ) शैव शाक्तादी संप्रदाय , ( 4 ) तंत्र ग्रंथ , ( 5 ) नशीली वस्तुसेवन , ( 6 ) व्यभिचार , ( 7 ) चोरी , ( 8 ) कपट , छल , अभिमान , मिथ्या भाषण आदि । और स्वीकार करने योग्य आठ सत्य हैं ( 1 ) वेदादि सत्यशास्त्र , ( 2 ) ब्रह्मचर्य पालन , ( 3 ) वेदोक्त वर्णाश्रम धर्म ( 4 ) पंच महायज्ञ , ( 5 ) शम , दम , 5 तप , आदि का सेवन , ( 6 ) विचार , विवके , वैराग्य ग्रहण , ( 7 ) काम , क्रोध , लोभ , मोह आदि का त्याग , ( 8 ) पंच क्लेशों से मुक्त होकर मोक्ष रूपी चरम लक्ष्य की प्राप्ति । ऋषि के इसी क्रांतिकारी चिंतन को डॉ . भवानीलाल भारतीय ने जो विस्तार दिया है वह पठनीय तथा अनुकरणीय है ।

    This is an authentic book from the writer of about sixty books on life and works of Swami Dayananda Saraswati – Dr . Bhawanilal Bhartiya . The readers will get acquainted with the revolutionary ideological thoughts of Swami Dayananda through this book . While on his journey for the cause of Religion , Swami Dayananda expounded Eight baseless notions to be relinquished and Eight Truths to be adopted for peaceful living . The author has elaborated on these thoughts .

  • ऋषि दयानंद के भक्त प्रशासक और सत्संगी – Rishi Dayanand Ke bhakt Prashaashak aur Satsangi

    प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक ने ऐसे 50 व्यक्तियों के जीवनवृत तथा स्वामी दयानन्द से इनके पारस्परिक सम्बन्धों की विवेचना की है , जो भक्त प्रशंसक तथा सत्संगी इन तीन वर्गों में परिगणित किये जा सकते हैं । भक्त से हमारा अभिप्राय उन लोगों से है जो स्वामी दयानन्द के महनीय व्यक्तित्व तथा उनकी लोकहित युक्त भावनाओं के प्रति प्रणतभाव रखते थे । यह आवश्यक नहीं कि ऐसे लोग पूर्णतया वैदिक विचारधारा के अनुयायी ही रहे हों । प्रशंसकों की श्रेणी में वे लोग हैं जो पौराणिक विश्वासों के प्रति निष्ठा रखने वाले उस सनातनी वर्ग के नेता थे जिनसे स्वामी जी का दीर्घकाल पर्यन्त संघ वर्ष तथा प्रतिद्वन्द्विता चलती रही । सत्संगी वर्ग में हम उन लोगों की गणना कर सकते हैं जो विचारों और आस्थाओं में स्वामी जी से कोसों दूर होते हुए भी स्वामी दयानन्द का सत्संग लाभ करना परम उपयोगी मानते थे और उन्हें देश एवं जाति का हित चिन्तक समझते थे ।

    In the present book the author has included life sketch of 50 great personalities and details of their mutual relations with Maharishi Dayanand Saraswati . These personalities can be categorized as Devotees , Admirer and who came in regular contact with Swami Dayanand .

  • ऋषि दयानंद का तत्त्व दर्शन – Rishi Dayanand ka Tatva Darshan

    पं . गंगाप्रसाद उपाध्याय अंग्रेजी में लिखित ‘ फिलोसॉफी ऑफ दयानन्द ‘ का हिन्दी अनुवाद । यह ग्रन्थ निराला है । इसकी शैली भी निराली है । सम्पूर्ण आर्य साहित्य में हमारे किसी भी दार्शनिक साहित्यकार ने इतनी सहज , सरल तथा स्वाभाविक युक्तियों से वैदिक सिद्धान्तों का मण्डन नहीं किया जो आपको इस ग्रन्थ में मिलेगा । उपाध्यायजी की हुछ विषयों पर मौलिक व्याख्याएं अत्यन्त दय स्पर्शी हैं । निस्सन्देह ऋषि दयानन्द की विचार धारा के अध्ययन से वर्तमान एवं भविष्य , दोनों युग लसभान्वित होते रहेंगे ।

    Translation of PHILOSOPHY OF DAYANAND by Pt . Ganga Prasad Upadyaya . Find the philosophy that is live , dynamic & positive . The philosophy of Dayanand rests on the self – evident Vedas , and not on the conditional evidences . The book speaks of the contemplative truths combined with scientific facts .

  • ऋषि दयानंद और आर्यसमाज ( भाग – १ ) – Rishi Dayanand aur Aryasamaj (Part 1)

    ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज ( भाग – १ ) ( सिद्धान्त खण्ड ) तथा भाग – २ ( समीक्षा खण्ड ) नामक मेरी अभिनव पुस्तक जनता जनार्दन के समक्ष प्रस्तुत है । इस नाम से दो खण्डों में पुस्तक प्रकाशन की योजना आज से लगभग आठ वर्ष पूर्व मेरे मन में आई थी , वह आज कार्यरूप में परिणत हो रही है । इसकी पृष्ठभूमि में मेरी सोच यह थी कि आज के सुपठित समाज में कोई एक ग्रन्थ ऐसा होना चाहिए जिसमें ऋषि दयानन्द संपोषित वैदिक धर्म की लगभग सभी मान्यताओं का तर्क प्रमाण पुरस्सर सुस्पष्ट प्रतिपादन हिन्दी भाषा में किया गया हो । इस एक ग्रन्थ को पढ़ने से ही ऋषि दयानन्द की वैदिक – दार्शनिक – आध्यात्मिक – याज्ञिक – सामाजिक – शैक्षणिक तथा राष्ट्रीय विचारों की सम्यक् जानकारी हो जाए । – डॉ . ज्वलंत कुमार शास्त्री

  • ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका – Rigvedaadibhasyabhumika

    चारों वेदों के भाष्य की भूमिका , स्वामी दयानन्द सरस्वती चारों वेदों का जो भाष्य रचना चाहते थे , उस भाष्य के आधारभूत 35 विषयों का इस भूमिका में निरूपण किया है । इसलिए ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका को अच्छी प्रकार से पढ़े बिना स्वामी दयानन्द सरस्वती का वेद भाष्य यथावत् समझ में नहीं आ – सकता । पं . युधिष्ठर मीमांसक – वेद की उत्पत्ति , रचना , प्रामाण्य अप्रामाण्य वेदोक्त धर्म आदि अनेक विषयों पर इस ग्रन्थ में स्पष्ट विचार किया गया है । पूर्व के वेदभाष्यकारों के अनेक अनार्ष मतों का विवेचन करके सप्रमाण वैदिक आर्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है । वेद के सिद्धान्तों को समझने के लिए यह ग्रन्थ अपूर्व है । – श्री देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय महर्षि ने इस भूमिका में पहले इस प्रश्न का उत्तर दिया है कि वेद क्या हैं और वेदोत्पत्ति का अत्यन्त सूक्ष्म विषय , सारगर्भित रीति से , निरूपण करने के पश्चात् वेदमन्त्रों के प्रमाणों से वेदों के विषयों को दर्शाते हुए , वेदों के सच्चे महत्व का बोधन कराया है । वेदों को वे सूर्यवत् स्वतःप्रमाण और शेष समस्त ग्रन्थों को परतः प्रमाण ठहराते हैं । – पं . लेखराम महर्षि दयानन्द ने अपनी योगदृष्टि द्वारा वैदिक तत्त्वों को साक्षात् कर वेदभाष्यों के रचने का संकल्प किया । जिन नियमों और सिद्धान्तों के आधार वेदभाष्य करना चाहते थे , उनका विस्तृत वर्णन ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका ग्रन्थ में किया गया है । प्रो . विश्वनाथ विद्यालंकार पर महर्षि अंग्रेजी में भी उपलब्ध ।

    Swami Dayananda’s supreme effort in the life was to give back to the world the VEDAS , the ancient treasure – house of Divine knowledge . There had been commentators and interpreters who had grossly misinterpreted the Vedas . So Dayananda’s task was two – fold , not only to interpret the Vedas in a proper and genuine manner but to remove their unholy ideas and misinterpretations . Dayananda’s Rigvedadi – Bhashya – Bhumika is a unique work in the field of Vedic Scholarship . Almost all vedic works and other scriptural and philosophical treatises in Sanskrit have been quoted in this work . It contains more than one thousand citations from all spheres of Sanskrit literature , including three hundred verses form the Vedas .

  • ऋग्वेद सम्पूर्ण (4 भाग) Rigveda Complete (4 Volumes) By: Swami Dayanand Saraswati

    मन्त्र , शब्दार्थ , भावार्थ तथा मन्त्रानुक्रमणिका सहित प्रस्तुत । मन्त्र भाग स्वामी जगदीश्वरानन्दजी द्वारा सम्पादित मूल वेद संहिताओं से लिया गया है । चारों वेदों में आकार की दृष्टि से ऋग्वेद सब से बड़ा है । यह दस मण्डलों , 1028 सूक्तों तथा 10589 मन्त्रों में समाहित है । दर्शन , धर्म , अध्यात्म शास्त्र , नीति एवम् आचार शास्त्र , लौकिक ज्ञान विज्ञान , मानव के हित में ऐसी कोई ज्ञान की शाखा या विधा नहीं है जिसकी चर्चा वेदों में न आई हो । ” संसार के पुस्तकालय में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है , इस बात को सभी पाश्चात्य विद्वानों ने स्वीकार किया है । भारत की धार्मिक परम्परा चारों वेदों को परमात्मा का अनादि ज्ञान मानती है जो सृष्टि के आरम्भ में मानव जाति के हितार्थ ऋषियों के माध्यम से दिया गया था । ऋग्वेद का प्रकाश अग्नि ऋषि के हृदय में हुआ था । ऋग्वेद की महिमा का वर्णन करते हुए मैक्समूलर ने कहा- जब तक पृथिवी पर पर्वत और नदियाँ रहेंगी तब तक संसार के मनुष्यों में ऋग्वेद की कीर्ति का प्रचार रहेगा ।

    ऋग्वेद विज्ञानवेद है । इसमें तृण से लेकर ईश्वरपर्यन्त सब पदार्थों का विज्ञान भरा हुआ है । प्रकृति क्या है ? जीव क्या है ? जीव का उद्देश्य क्या है और उस लक्ष्य प्राप्ति के साधन क्या हैं ? ईश्वर का स्वरूप क्या है ? उसकी प्राप्ति क्यों आवश्यक है और वह किस प्रकार हो सकती है ? इत्यादि सभी बातों का वर्णन ऋग्वेद में मिलेगा । महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद का भाष्य करना प्रारम्भ किया था , परन्तु वह पूर्ण न हो सका । स्वामीजी सातवें मण्डल के 61 वें सूक्त के दूसरे मन्त्र तक ही भाष्य कर पाये । आगे का भाष्य उन्हीं की शैली में अन्य वैदिक विद्वानों ने पूर्ण किया । ऋग्वेद के दो ब्राह्मण हैं ‘ ऐतरेय ‘ और ‘ कौषीतकी ‘ । इसका उपवेद आयुर्वेद है ।

     Complete Rigveda Bhashya ( 10589 Hymns ) , Computerized for the first time , Accurate Matter , Clean and Charming Printing , Attractive Cover , Good Quality Paper , Hard Bound Binding , Beautiful Type Font , with Word Meaning and List of Mantras at the end Rigveda says- light the fire of life , ignite the cosmic Energy , and receive the Enlightenment of the Life Divine : Move together forward in unison , speak together , and with equal mind all in accord , know you all together as the sages of old , knowing and doing together , play their part in life and fulfil their duty according to Dharma . -Rg .

  • उपनिषदों में आर्यसमाज के दस नियमों का दिग्दर्शन (Upnishadon Me Aryasamaj Ke Das Niyamon ka Dikdarshan))

    उपनिषदों में आर्यसमाज के दस नियमों का दिग्दर्शन मैंने इस पुस्तक के लिखने में प . वैद्यनाथ शास्त्री कृत ‘ प्रमाण गागर ‘ . पं ० गंगाप्रसाद उपाध्याय कृत ‘ भगवत् कथा ‘ , प्रो . सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार कृत ‘ उपनषिद् प्रकाश ‘ तथा पं . शिवशंकर काव्यतीर्थ के ‘ बृहदारण्यक उपनिषद ‘ का पर्याप्त प्रयोग किया है । आशा है विद्वजन इस पर विचार करेंगे और उपनिषदों को समझने में इसे उपयोगी पाएँगे । -ब्र नन्दकिशोर

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