• क्या खाएं क्यों खाएं ? Kya Khaye Kyon Khayen?

    जीवित रहने हेतु प्राणिमात्र को भोजन अर्थात् खान – पान की आवश्यकता होती है , परन्तु खान – पान का अर्थाकन मात्र इतने से करना पर्याप्त नहीं है । खान – पान के द्वारा ही हम शरीर संचालन व अन्य सभी कार्य करने हेतु ऊर्जा प्राप्त करते हैं । इसके द्वारा हमारे शरीर का निश्चित तापमान स्थिर रहता है । यह नई कोशिकाओं का निर्माण व टूटी हुई एवं कमजोर कोशिकाओं तथा ऊतकों की मरम्मत करता है तथा इसी के द्वारा शरीर को निरोग ( स्वस्थ ) व सबल रखा जा सकता है , परन्तु खान – पान के अनुचित , असंयमित व अपथ्य ( बपरहेजी ) प्रयोग से स्वस्थ शरीर भी अस्वस्थ व निर्बल हो सकता है ।

    महर्षि चरक ने भी लिखा है कि

    येनाहार विहारेण रोगाणामुद्भवो भवेत । ‘ अर्थात् – गलत आहार – विहार के कारण ही रोग उत्पन्न होते हैं ।

    अत : आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञात होना चाहिये कि उसके लिये क्या अपथ्य है और क्या पथ्य ? किस आहार को किस प्रकार व कितनी मात्रा में ग्रहण करना चाहिए ? किस खान – पान से क्या लाभ है और क्या हानि है ? किस ऋतु में कौन – सा भोजन ग्रहण करना चाहिए और कौन – सा नहीं ? किस वस्तु के साथ कौन – सी वस्तु का संयोग ( ग्रहण करना ) लाभकर है और किसके साथ हानिकर है ? यदि उक्त बातों को समझकर व्यक्ति तद्नुकूल अपना दैनिक खान – पान , दिनचर्या व आचरण रखें तो सदैव निरोग रह सकता है ।

  • क्या अथर्ववेद में जादू टोना आदि है ? ( Kya Atharvaved mein jadoo tona aadi hai ? )

    जादू शब्द फारसी भाषा का है । वहाँ पर इसका अर्थ बाजीगरी के खेल तमाशे , अमानुषिक करिश्मे , वशीकरण तथा हिंसा , परघात आदि हैं । जादू शब्द वेद के ‘ यातु ‘ शब्द का अपभ्रंश है । ‘ यातु ‘ का अर्थ हिंसा है । यातयति वधकर्मा ( निघण्टु २।१ ९ ) । अथर्ववेद में उपर्युक्त किसी भी कार्य का वर्णन नहीं है । वस्तुतः यह प्रतिपादन करना अत्यन्त कठिन है कि अथर्ववेद में जादू – टोना , सम्मोहन , वशीकरण , मारण- उच्चाटन आदि नहीं है । इसके विपरीत यह कहना अति सरल है कि अथर्ववेद में इन सबका वर्णन है । इसका कारण यह है कि अथर्ववेद में मारण , सम्मोहन , वशीकरण आदि से सम्बन्धित अनेक मन्त्र हैं । इनके साथ ही कृत्या , अभिचार , मणिबन्धन आदि का प्रतिपादन भी अथर्ववेद में किया गया है , किन्तु इनका वह अर्थ नहीं जोकि आजकल समझा जाता है । अथर्ववेद में अन्य दृष्टि से इनका प्रतिपादन किया गया है । यहाँ पर अन्तर केवल दृष्टि है ।

    ऐसा हम आज प्रत्यक्षरूप में देखते हैं । आज भी अनेक व्यक्तियों को भूत – प्रेत अथवा ऊपरी हवा से ग्रसित समझकर ओझाओं द्वारा उनका भूत – प्रेत दूर करने का स्वांग किया जाता है । अनेक व्यक्ति हवा में हाथ हिलाकर कोई पदार्थ दर्शकों के सामने प्रस्तुत करके अथवा अन्य किसी प्रकार से कोई चमत्कारपूर्ण प्रदर्शन करके दर्शकों के सामने जादू अथवा सिद्धि प्राप्ति की बात करते हैं । ये सब अन्धविश्वास हैं तथा अवैज्ञानिक लोगों में ही अधिक प्रचलित हैं । इनका पर्दाफाश करने के लिए आजकल एक वैज्ञानिक अनुसन्धान समिति कार्य कर रही है जिसकी चर्चा प्राय : समाचार पत्रों में भी आती रहती है । इन लोगों का दावा है कि इस प्रकार के कार्यों में जादू जैसी कोई बात नहीं है , अपितु यह केवल हाथ की सफाई है । भूत – प्रेत तथा ऊपरी हवा के विषय में भी यही बात है । आज डॉक्टरी परीक्षणों के आधार पर यह भली – भाँति सिद्ध हो गया है कि अनेक मानसिक तथा शारीरिक रोगों से ग्रस्त रोगियों को ही अज्ञानवश भूत – प्रेतों आदि से ग्रसित समझ लिया जाता है । इसी प्रकार अथर्ववेद में भी इन सब बातों का वर्णन है , कृत्या , अभिचार आदि के नाम हैं , वशीकरण , सम्मोहन , मणिबन्धन भी है । अतः समझ लिया जाता है कि ये सब क्रियाएँ जादू – टोने से सम्बन्धित हैं तथा अथर्ववेद इनका प्रतिपादक है । यह केवल पूर्वाग्रह है ठीक उसी प्रकार जैसे कि मानसिक रोगी को भूत – प्रेत से ग्रस्त समझने का । इसीलिए मैंने कहा कि अथर्ववेद में जादू – टोने आदि का प्रतिपादन करना अतिसरल है

  • काला पानी – Kala Pani (Savarkar)

    काला पानी की यातना एवं त्रासदी आप सभी जानते हैं।
    काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसके नाम से ही ज्ञात होता है।
    विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अतः उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखा वर्णन है। इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का उल्लेख है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे।काला पानी के कैदियों पर को क्रूरतम अत्याचार किए गए, कैसी -कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा उन सभी अश्रु दिला देने वाली घटनाओं का वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्रण भी उकेरा गया है। उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।.

  • कलिकालिन भारत – Kalikalin Bharat By Kunj Bihari Jalan

    महाभारत के बाद राजा परीक्षित से श्रीहर्ष ( सम्राट् हर्षवर्धन ) तक का इतिहास बड़े ही शोध के बाद लिखा गया है । यह सन् 2005 ई . से ही लिखा पड़ा है । इन सारे ग्रंथों के शोध और लेखन में जीवन के पचास वर्ष से अधिक का ही समय लग गया है । इस ग्रंथ की कुछ अपनी विशेषताएं हैं । इसमें भारतीय ऋषियों का इतिहास हमने पहली बार अध्याय 1 में दिया है । इसमें लिखा गया सारा इतिहास पुराण साहित्य , महाभारत तथा अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों , पत्र – पत्रिकाओं पर आधारित है । अध्याय 2 से महाभारत के बाद श्री अयोध्या , कौशाम्बी का पौरववंश , इन्द्रप्रस्थ का राजवंश तथा मगध के राजवंशों का वर्णन है । आन्ध्रवंश के बाद भागवत , विष्णु , मत्स्य तथा वायु पुराणों के आधार पर आभीर , गर्दभी शंक ( कंक ) यवन , तुर्क , गुरुण्ड , मीन तथा तुषार , हुण वंशीय राजाओं का इतिहास दिया गया है , पुराणों के अतिरिक्त अन्य इतिहासों में इतना स्पष्ट नहीं है । इनके अतिरिक्त महाभारत से पुलिन्द काम्बोज , वाहीक राजाओं का वर्णन भी इसमें है । इस ग्रंथ की एक और विशेषता यह है कि युधिष्ठिर से लेकर गजनी के सुलतान शाहबुद्धीन गौरी तक के राजवंशों तथा राजाओं ने इन्द्रप्रस्थ ( दिल्ली ) पर कितने वर्ष , कितने मास और दिनों तक राज्य किया , इसकी एक विस्तृत सूची भी अध्याय 5 में दी गई है । साथ ही परिशिष्ट एक और दो में काश्मीर तथा गुजरात के राजाओं की तालिका भी विस्तार के साथ दी गई है । अध्याय 24 में सम्राट् चन्द्रहरि विक्रमादित्य प्रथम , उज्जैन के सम्राट का वर्णन बहुत प्रमाणों के साथ इस ग्रंथ में लिखा गया है , जो अन्य इतिहासों में उपेक्षित रहा है ।

  • कर्मफल सिद्धांत – Karmphal Siddhant

    उपाध्याय जी जन्मजात दार्शनिक थे । दर्शन तथा सिद्धान्त सम्बन्धी अनेकों उच्चकोटि के ग्रन्थ उन्होंने लिखे । पाप , पुण्य , दुःख , सुख , मृत्यु , पुनर्जन्म , जीव व ब्रह्म का सम्बन्ध विषयक अनके प्रश्नों पर इस पुस्तक में युक्तियुक्त सप्रमाण प्रकाश डाला गया है । ‘ कर्म – फल – सिद्धान्त को बार बार पढ़ने को आपका मन करेगा । प्रश्नोत्तर शैली में अत्यन्त शुष्क विषय को उपाध्याय जी ने बहुत रोचक व सरल सुबोध बना दिया है । कर्म फल सिद्धान्त पर छोटी – बड़ी अनेक पुस्तकें हैं , परन्तु उपाध्याय जी की यह पुस्तक अपने विषय की अनुपम कृति | उपाध्याय जी ने स्वयं ही इसका उर्दू अनुवाद किया था । उपाध्याय जी की कौन सी दार्शनिक पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है , यह निर्णय करना किसी भी विद्वान् के वश की बात नहीं है । बस यही कहकर सब गुणियों को सन्तोष करना चाहिए । कि अपने स्थान पर उनकी प्रत्येक पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है । ज्ञान पिपासु पाठक , उपाध्याय जी के सदा ऋणी रहेंगे ।

  • कथा पच्चीसी ( Katha Pachisee )

    स्वामी दर्शनानन्द जी का यह कथा – संकलन उत्प्रेरक है , मर्म – स्पर्शी भी । यह बालोपयोगी भी रहे , इसके लिए अशलीलता – बोधक शब्दों और पात्रों के नाम बदल दिये गए हैं । इसमें पौराणिक और लोक – कथाओं का रोचक वर्णन है । प्रत्येक कथा अंत में मार्मिक उपदेश दे जाती है । इसे सभी आयु के पाठक पढ़ें और ज्ञानार्जन करें , यही स्वामी दर्शनानन्द जी का ध्येय था और यही हमारा उद्देश्य है ।

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